क्रोध को क्षमा से शमन करें: प्रशांत अग्रवाल

नारायण सेवा संस्थान में दिव्यांग वार्ता का समापन

उदयपुर, 28 जुलाई। “एक समय  में अनेक कार्यों में उलझने के बजाय एक लक्ष्य तय कर उसे सतत प्रयासों से पूरा करना ही सफलता की कुंजी है। विफलता या पराजय केवल एक पड़ाव है, अंतिम परिणाम नहीं। कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।”
यह प्रेरणास्पद विचार नारायण सेवा संस्थान में आयोजित ‘अपनों से अपनी बात’ कार्यक्रम के समापन अवसर पर संस्थान अध्यक्ष प्रशांत अग्रवाल ने दिव्यांगजनों और उनके परिजनों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
अग्रवाल ने कहा कि क्रोध मानव का सबसे बड़ा शत्रु है, जिसे क्षमा और संयम से शांत किया जा सकता है। साथ ही उन्होंने यह भी स्मरण कराया कि मनुष्य को अपने ज्ञान, धन या बाहुबल पर घमंड नहीं करना चाहिए। सबसे बड़ा बल ईश्वर का होता है, जिसकी कृपा से एक छोटी चींटी भी हाथी को परास्त कर सकती है।
कार्यक्रम में देश के विभिन्न हिस्सों से आए दिव्यांगजनों ने अपनी भावनाएं और संस्थान से जुड़े अनुभव साझा किए। मेरठ के भानुप्रताप सिंह, वैशाली के मुकेश कुमार, राजसमंद के धर्मराज, दिल्ली के छोटूलाल, भीलवाड़ा के राजवीर, बांसवाड़ा के कपिल मेहता और सहारनपुर के मोहम्मद अली ने बताया कि जन्मजात या दुर्घटनावश हाथ-पांव में आई विकृतियों के कारण चलना-फिरना असंभव था। लेकिन संस्थान में निःशुल्क सर्जरी, कृत्रिम अंग और कैलीपर के सहारे अब वे न केवल चल पा रहे हैं, बल्कि अपने दैनिक कार्य भी सहजता से कर पा रहे हैं।
प्रयागराज से आए मानसिंह ने बताया कि वे अपने चार वर्षीय पुत्र को लेकर संस्थान आए हैं, जिसके दोनों पांव जन्म से मुड़े हुए थे। संस्थान में एक पांव का सफल ऑपरेशन हो चुका है, और कुछ दिनों में दूसरे पांव का ऑपरेशन भी प्रस्तावित है।
इस अवसर पर दिव्यांगजनों की दृढ़ इच्छाशक्ति और संस्थान की सेवा भावना ने मिलकर एक बार फिर यह साबित किया कि सही मार्गदर्शन और अवसर मिलने पर हर चुनौती पर विजय पाई जा सकती है।

By Udaipurviews

Related Posts

error: Content is protected !!