जीवन में सफलता के लिए शारीरिक, मानसिक, अध्यात्मिक विकास जरूरी – प्रो. सारंगदेवोत

नव आगंतुक छात्राध्यापकों का दीक्षारंभ समारोह का हुआ आयोजन
जीवन में सफलता के साथ अच्छा इंसान बनना जरूरी – प्रो. सारंगदेवोत
जीवन में सफलता का कोई शोर्टकट नहीं – प्रो. मुनेश चन्द्र त्रिवेदी

उदयपुर 11 अगस्त / राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के संघटक लोकमान्य तिलक शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय के अन्तर्गत संचालित बीए बीएड, बीएसी बीएड के नव आगन्तुक छात्राध्यापकों के लिए आयोजित दीक्षारंभ समारोह का शुभारंभ सोमवार को महाविद्यालय के सभागार में कुलपति कर्नल प्रो. शिवसिंह  सारंगदेवेात, प्रो. मुनेश चन्द्र त्रिवेदी, प्राचार्य प्रो. सरोज गर्ग, डॉ. अमी राठौड़, डा. बलिदान जैन, डॉ. रचना राठौड़ ने मॉ सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्जवलित कर किया। समारोह में अतिथियों द्वारा सभी नवआगंतुक विद्यार्थियों का उपरणा ओढा कर सम्मान किया गया।
अध्यक्षता करते हुए प्रो. सारंगदेवोत ने नवप्रवेशित छात्राध्यापकों का आव्हान किया कि हर व्यक्ति सफल होना चाहता है, सफलता के साथ एक अच्छा इंसान बनना भी बेहतद जरूरी है। लक्ष्य निर्धारित, टाईम मैनेजमेंट, स्वयं के प्रति जिम्मेदार, आत्म अनुशासन के साथ जीवन में आगे बढ़ेेगे तो जीवन में कभी असफल नहीं होंगे। जीवन में हमेशा सपने उंचे देखे और लक्ष्यों को छोटे छोटे टुकड़ों में बांट कर पूरा करने का प्रयास करें, लक्ष्य ही अगर छोटा होगा तो आप जीवने में कुछ नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि असफलता ही सफलता की पहली सीढ़ी है। जीवन में जीतनी बड़ी रिस्क होगी, सफलता भी उतनी ही बड़ी मिलेगी और अवसर भी अधिक मिलेंगे। जीवन में आगे बढने के लिए शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक विकास जरूरी है। प्रो. सारंगदेवोत ने शिक्षक प्रशिक्षण ले रहे नव आगन्तुक छात्राध्यापकों को राष्ट्र निर्माण में अहम भूमिका निभाने की प्रेरणा दी व साथ ही उन्हे उत्कृष्ट प्रशिक्षण लेकर भविष्य में छात्रों को शिक्षा के साथ साथ समाज में भारतीय संस्कृति व मूल्यों को चरितार्थ कराने उनकी महत्वपूर्ण भूमिका पर बल दिया। हम कितना भी तकनीक का उपयोग कर ले आत्मीयता क्लास रूम से ही आती है, इससे गुरू और शिष्य को आपस में समझने का अवसर मिलता है। हमारे सनातन मूल्य कभी बदल नहीं सकते और यही हमारी पहचान है।  वर्तमान में शिक्षक के प्रति सम्मान कम होता जा रहा है जिसके लिए हम सभी दोषी है इसके लिए गुरू शिष्य परम्परा को पुनः कायम करना होगा। संस्थापक जनुभाई कहा कहते  थे कि कोई विद्यार्थी फेल होता है तो  वह शिक्षक को फेल मानते थे, उनका मानना था कि शि़क्षक में ही कोई कमी रही होगी जिसके कारण विद्यार्थी फेल हुआ है।
मुख्य अतिथि प्रो. मुनेश चन्द्र त्रिवेदी ने कहा कि जीवन में सफलता का कोई शोर्ट कट नहीं होता। कनिठ परिश्रम ही सफलता की कुंजी  है। आज का युवा नम्बरों के पिछे भाग रहा है जीवन का उद्देश्य क्या वह भी उसे मालूूम नहीं है। इसलिए जीवन में व्यवहारिक ज्ञान भी नहीं  है। नयी शिक्षा नीति में विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास पर ज्यादा ध्यान दिया गया  है। उन्होंने कहा कि आज की शिक्षा को कला, इंजीनियरिंग एवं साईंस से जोड़ना होगा। रटने की प्रवृत्ति को खत्म करनी होगी। अगर बच्चे को एआई के माध्यम से सिखाया जाये तो वह विषयवस्तु उसे जीवनभर याद रहेगी, साथ वोकेशनल शिक्षा को बढ़ावा देने की जरूरत है। व्यक्ति का विकास एवं प्रलय शिक्षक के  हाथ में है। बच्चांे के सर्वांगीण विकास की जिम्मेदारी शिक्षकों पर है।
प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए प्राचार्य डॉ. सरोज गर्ग ने कहा कि  आज से विधार्थी, अभिभावक विश्वविद्यालय का हिस्सा है। युवा शक्ति राष्ट्र का भविष्य है। विधार्थियों को कदम से कदम मिलाकर चलना होगा। शिक्षा का कार्य केवल चार दिवारी तक ही सीमित नहीं हो कर वरन् समाज में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होती है। शिक्षा का कार्य एक पेशा नही है बल्कि पुनित कार्य है जो देश की भावी पीढी को तैयार करता है।
संचालन डॉ. हरीश चौबीसा ने किया जबकि आभार डॉ. अमी राठौड ने जताया।
समारोह में महाविद्यालय के अकादमिक कार्यकर्ता एवं विधार्थी उपस्थित थे।

By Udaipurviews

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