उदयपुर, 4 सितम्बर। श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्रीसंघ के तत्वावधान में मालदास स्ट्रीट स्थित आराधना भवन में चातुर्मास कर रहे पंन्यास प्रवर निरागरत्न विजय जी म.सा. ने बुधवार को धर्मसभा में कहा कि पर्युषण महापर्व कषाय शमन का पर्व है। इन दिनों में किसी के भीतर में ताप, उत्ताप पैदा हो गया हो, किसी के प्रति द्वेष की भावना पैदा हो गई हो तो उसको शान्त करने का यह पर्व है। क्षमा यानी समता। क्षमा जीवन के लिए बहुत जरूरी है। जब तक जीवन में क्षमा नहीं, तब तक व्यक्ति अध्यात्म के पथ पर नहीं बढ़ सकता। आज हर आदमी बाहर ही बाहर देखता है। जब किसी निमित्त से भीतर की यात्रा प्रारम्भ होती है और अनुभूति होती है कि सारा सुख भीतर है, आनंद भीतर है। शक्ति का अजस्र स्रोत भी भीतर है। सभी कुछ भीतर है तब आत्मा अंतरात्मा बन जाती है। यही कारण है कि पर्युषण महापर्व स्वयं से स्वयं के साक्षात्कार का अलौकिक अवसर है। यह अंतरआत्मा की आराधना का पर्व है। भगवान महावीर ने क्षमा यानी समता का जीवन जीया। वे चाहे कैसी भी परिस्थिति आई हो, सभी परिस्थितियों में सम रहे। महान् व्यक्ति ही क्षमा दे व ले सकता है। परलोक सुधारने की भूलभूलैया में प्रवेश करने से पहले इस जीवन की शुद्धि पर ध्यान केन्द्रित होना चाहिए। श्रीसंघ अध्यक्ष डॉ. शैलेन्द्र हिरण ने बताया कि पर्युषण महापर्व में त्याग-तपाराधनाओं के ठाठ लगे हुए है। साथ ही बाहर से दर्शनार्थियों के आने का क्रम लगातार बना हुआ है।
पर्युषण महापर्व स्वयं से स्वयं के साक्षात्कार का अलौकिक अवसर है : निरागरत्न
