उदयपुर। शासन श्री मुनि सुरेश कुमार ने कहा – श्री कृष्ण बाइसवें तींथकर अरिष्टनेमी के चचेरे भाई थे। कृष्ण की यह उदारता आदर्श है कि उन्होने कहा था कि अगर किसी परिवार से कोई दीक्षा लेना चाहे तो उसके परिवार के देखभाल की जिम्मेदारी मेरी है? अगर हम कृष्ण की रास लीलाओं के साथ उनके भक्ति योग को अगर दुनिया के सामने प्रस्तुत किया जाता तो सृष्टि समस्याओं से मुक्त हो जाती। वे महाप्रज्ञ विहार में “श्री कृष्ण जन्माष्टमी” पर आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधित कर रहे थे। जन्म हुआ तो कोई गीत गाने वाले ना थे और अवसान हुआ तो कोइ रोने वाले ना थे, किन्तु हर सांस को जिंदादिली से जीकर वे सारी सृष्टि के लिए वे पुज्य हो गए।
मुनि सम्बोध कुमार ‘मेधांश’ ने कहा – कृष्ण प्रेम, लचीलापन, संवेदना सीखाते हैं और सीखाते हैं राजनीती अगर सीखने की ललक हो। कृष्ण मोटिवेशनल गुरु है, गीता का हर शब्द प्रेरित करता है। अर्जुन रथ के सारथी बनकर कृष्ण ही पांड़वो को समरभूमि में विजयश्री दिला सकते हैं। कृष्ण की बांसुरी से हम तीन बातें सीखे- बिना पूछे ना वोले, छेद हो तो क्या हुआ अच्छे किरदार निभाए, जब भी बोले कुछ इस तरह मिठास घोलकर बोले कि इंसान तो क्या पशु पक्षी भी हमारे इर्द-गिर्द रहना पसंद करें।
मुनि सिद्धप्रज्ञ ने कहा- जब जब धर्म की हानि होती है तब-तब इस धराधाम पर कोई न कोई महापुरुष इस धरती पर अवतार लेते हैं। श्री कृष्ण सृजित भगवत गीता में जैन, बौद्ध, सनानात सभी संस्कृतियों का समवाय है। गीता में ज्ञान योग, भक्तियोग व कर्मयोग का अद्भुत संगम है। श्री कृष्ण के संदेशों को अगर जीवन में आत्मसात किया जाए तो हम दुनिया में एक बड़ा बदलाव ला सकते है। जैन दर्शन की मान्यता के अनुसार श्रीकृष्ण भावी तीर्थकर है। हम कृष्ण को माने ही नहीं उन्हें जानने की दिशा में आगे बढे।