चरम तीर्थंकर ने लिया जन्म, गुंजा जय जय नंदा जय जय भद्दा 

उदयपुर।  पर्युषण पर्व के पाँचवे दिन अणुव्रत दिवस पर धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए आचार्य महाश्रमण के आज्ञानुवर्ती शासन श्री मुनि सुरेश कुमार ने कहा- जो श्रावक रत्नत्रयी का ज्ञाता होता है उसके लिए जरूरी है कि वह सम्यक दर्शन की आराधना करें। व्रत स्वयं से जुड़ने की एक दिव्य प्रेरणा और मन की वृप्ति का सर्वोत्तम उपाय है, इससे कामना और वासना के रास्ते बंद हो जाते है। समाज में समस्याओं का अंत तभी हो सकता है जब मानव मन में व्रत की चेतना जागे। अणुव्रत व्यक्तिगत सामाजिक, राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय सभी समस्याओं का समाधान है। इन्हे जीवन शैली बनाने से स्वास्थ्य और समाधि दोनों बने रहते है। देश के चारित्रीक उत्थान के लिए आचार्य तुलसी ने झुग्गी झोपड़ी से राष्ट्रपति भवन तक अणुव्रत का शंखनाद किया। इसका उद्देश्य है मानवीय एकता, सह अस्तित्व का विकास साम्प्रदायिक सद्भावना।
मुनि सम्बोध कुमार ‘मेधांश’ ने “लो हो गया वर्धमान का जन्म, विषय पर सम्बोधित करते हुए कहा- विक्रम पूर्व पाँच सौ बैयालिस चैत्र शुक्ला त्रयोदशी उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र की आधी रात को अंततः भव परंपरा से गुजरते हुए राजा सिद्धार्थ के प्रांगण पर रानी त्रिशला की पुनीत कोरव से महावीर का जन्म हुआ । मुनि के प्रभु के जन्म की घोषणा के साथ सभागार जय जय नंदा-जय जय महा ‘गगनभेदी घोष से गुंज उठा यह समय शुभ का श्रेष्ठ और ग्रहों की उच्च स्थिति लिए हुए था, महावीर जन्म सृष्टि के दुःखों का अंत करने हुआ था था।
करुणा सागर नेमिनाथ विषय पर बोलते हुए मुनि सिद्धप्रज्ञ ने कहा माता ने सपने में रिस्टरत्नमय चक्र को देखा तो बालक का नाम अरिस्ट रखा गया।भगवान अरिष्टनेमि जिनका दूसरा नाम नेमिनाथ था ओर वासुदेव श्री कृष्ण दोनो चचेरे भाई थे। नेमिनाथ और राजीमती जी का पिछले आठ भवो तक बहुत गहरा आध्यात्मिक तक संबंध रहा। हर भव में दीक्षा ली और देवलोक गए।दोनो ने गिरनार पर्वत पर 1 माह का संथारे करके 536 लोगो के साथ मोक्ष को प्राप्त किया। 22 वे तीर्थंकर नेमिनाथ करुणा के महान सागर थे। जब उन्हें पता चला कि मेरी शादी के निमित्त इतने पशुओं को मारा जाएगा तो उन्होंने तत्काल रथ मोड कर संयम रथ की ओर बढ़ा दिया भगवान का पूरा जीवन अहिंसा प्रेम और करुणा से ओतप्रोत था।
By Udaipurviews

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