– पद्मावती माता का जाप एवं सामूहिक एकासना किया
– पर्युषण पर्व के तहत आयड़ तीर्थ पर हुए विविध धार्मिक अनुष्ठान
– साध्वियों के सानिध्य में अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की
उदयपुर 15 सितम्बर। श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ पर बरखेड़ा तीर्थ द्वारिका शासन दीपिका महत्ता गुरू माता सुमंगलाश्री की शिष्या साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री एवं वैराग्य पूर्णाश्री आदि साध्वियों के सानिध्य में शुक्रवार को पर्वाधिराज महापर्व पर्युषण के तहत धर्म-ध्यान, पूजा, पाठ, सामायिक, तप व तपस्या आदि में श्रावक-श्राविकाएं उमड़ रहे है। महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे दोनों साध्वियों के पर्युषण महापर्व के तहत आरती, मंगल दीपक, सुबह सर्व औषधी से महाअभिषेक एवं अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। प्रात: सवा नौ बजे से भक्तामर स्तोत्र पाठ के पश्चात पारसनाथ भगवान की चरण सेविका राजराजेश्वरी ,एक भवावतारी, पद्मावती माता का जाप करवाया गया। जैन श्वेताम्बर महासभा के अध्यक्ष तेजसिंह बोल्या ने बताया कि पर्युषण महापर्व की आराधना चौथे दिन प्रवचनों की श्रृंखला में प्रात: 9.15 बजे साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री व वैराग्यपूर्णा की निश्रा में पर्वाधिराज महापव्र पर्युषण की आराधना-साधना, उपासक का उपक्रम बहुत ही उल्लासमय वातावरण के साथ चल रहा है। श्रावक-श्राविकाओं में परमात्म भक्ति का अनुपम नजारा दृष्टिगोत हो रहा है तो प्रवचन श्रवण में भी उतना ही उत्साह नजर आ रहा है। इस दौरान आयोजित धर्मसभा में साध्विायों ने कल्पसूत्र के विषय में बताया कि जिस प्रकार पर्वों में पर्व पर्वाधिराज पर्युषण, सूत्रों में सूत्र कल्पसूत्र जैन जगत् के श्रृंगार है। पर्वाविराज पर्युषण की परम पावन बेला में श्री कल्पसूत्र का वाचन एवं श्रवण आगम के समान हितकर है। श्रुत केवली चौदह पूर्वधारी युग प्रधान श्री भद्रबाहु स्वामीजी ने प्रत्याख्यान प्रवाद नामक नवम् पूर्व से उद्धृत करके जो दशभुत स्कन्ध नामक शास्त्र बनाया था यह कल्पसूत्र उसी का आठवाँ अध्ययन है। कहते है कि पर्युषण पर्वाधिराज है तो श्री कल्पसूत्र ग्रन्थाधिराज ऐसे महामहिम श्री कल्पसूत्र को भाव-नमन करते हुए इसकी सौरभ को आत्मसात करें। चातुर्मास संयोजक अशोक जैन ने बताया कि आयड़ जैन तीर्थ पर पर्युषण महापर्व के तहत प्रतिदिन सुबह 9.15 बजे से चातुर्मासिक प्रवचनों की श्रृंखला में धर्म ज्ञान गंगा अनवरत बह रही है।
जन-जन का मंगलकारक है कल्पसूत्र : वैराग्य पूर्णाश्री
