उदयपुर। सूरजपोल स्थित दादाबाड़ी में साध्वी विरल प्रभा श्रीजी ने कहा कि कर्मों के वश में जीव संसार में भटक रहा है। अपने अपने कर्मों के कारण जीव भटक रहा है। धर्म सत्ता और कर्म सत्ता। धर्म सत्ता पुण्य बढ़ाती है वहीं कर्म सत्ता दोनों को बढ़ाती है। धर्म सत्ता ऊर्ध्व गति की ओर ले जाती है वहीं कर्म सत्ता अधो गति मेले जाती है। परमात्मा ने कर्मों का नाश किया तो उन्हें कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। बात करते हैं, खाना खाते हुए बात करते हैं लेकिन ये सब ज्ञानावर्णी कर्म आपको रोक रहा है। सोने जैसी आत्मा को लोहा बनाने वाला आपका जीव है।
उन्होंने कहा कि इसके बाद अन्य कर्म आते हैं। प्रवचन सुनते हुए नींद आ रही है। मंदिर में बातें कर रहे हैं। आपका ध्यान मंदिर में परमात्मा पर ही होना चाहिए। मंदिर में संत साध्वी बैठे हैं तो मत्थे वन्दामि कह सकते हैं। अन्य लोगों से जय जिनेन्द्र कर सकते हैं। किसी भी भव में हो ये खराब कर्म पकड़ ही लेगा। कोई कुछ मांगता है तो उसे कहा अभी नही बाद में मतलब कर्मों का बंधन कर रहे हैं।
साध्वी श्रीजी ने कहा कि कर्म सत्ता को कैसे तोड़ना है जो बंधन करवा रही है। संसार में रहोगे तो सांसारिक सुख मिलेगा। छोटे भाई के यहां अगर बड़ा भाई नौकरी करे तो उसका पूर्व जन्म का पुण्य कितना प्रबल होगा!
साध्वी विपुलप्रभा श्रीजी ने कहा कि जीव अज्ञान दशा में पड़ा है फिर भी हम धर्म की ओर नही जा रहे हैं। संसार से ऊपर उठकर मोक्ष की ओर जाने का यत्न करना है इसके लिए परमात्मा की वाणी का श्रवण करके उसे अपने जीवन में उतारना है।
अपने-अपने कर्मो के कारण जीव भटक रहाः विरलप्रभाश्री
