चालिहा महोत्सव की भक्ति में रंगा उदयपुर : सिंधी समाज के मंदिरों में आस्था, परंपरा और संस्कृति की त्रिवेणी

उदयपुर ।   शहर के कोने-कोने से इन दिनों “आयोलाल झूलेलाल!” की दिव्य गूंज सुनाई दे रही है। कारण है सिंधी समाज का आस्था-पर्व “चालिहा महोत्सव”, जो वरुण भगवान झूलेलाल की भक्ति, अनुशासन और सांस्कृतिक मूल्यों से ओतप्रोत है। 16 जुलाई से प्रारम्भ हुये इस 40 दिवसीय महोत्सव में सिंधी समाज की श्रद्धा, सेवा और परंपरा का अद्भुत संगम देखने को मिल रहा है  , भक्तों द्वारा मंदिर में मनोकामना पूर्ण होने पर अपनी तरफ से रोजाना आरती में प्रसाद चढ़ाया जाता है जो आए हुए भक्तों में बांटा जाता है।
           श्री झूलेलाल सेवा समिति के प्रताप राय चुग ने बताया कि पाकिस्तान से हिन्दूस्तान तक — एक समाज की आस्था की अमर गाथा यह महोत्सव केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि एक विस्थापित समाज की अपनी जड़ों से जुड़ने की जीवंत मिसाल है।  सिंध की धरती से निकले, विभाजन के दर्द से गुज़रे और भारत में नये जीवन की नींव रखने वाले सिंधी समाज ने न सिर्फ झूलेलाल भगवान् की परंपराओं को जीवित रखा, बल्कि उसे हर पीढ़ी तक एक संस्कार के रूप में सौंपा।
शहर के प्रमुख मंदिरों में भक्ति का महापर्व
पूर्व राज्य मंत्री एवं श्री जेकबआबाद सिंधी पंचायत अध्यक्ष हरीश राजानी ने जानकारी दी कि शक्तिनगर, हिरणमगरी सेक्टर-4, सेक्टर 11–13, सेक्टर-9 वृद्धाश्रम  एवं जवाहर नगर स्थित झूलेलाल मंदिरों में प्रतिदिन सायंकाल विधिवत पूजा, आरती, झांझ-डोल भजन और हाथ प्रसाद का आयोजन हो रहा है। भजनों की मधुर स्वर लहरियाँ, महिलाएं आरती की थाल लिए सजधज कर आतीं, बच्चों की भागीदारी, और युवाओं का उल्लास — ये दृश्य किसी धार्मिक मेले से कम नहीं।
       नंगे पांव, भूमि पर विश्राम, सात्विक भोजन — भक्ति की गहराई की अनूठी मिसाल
चालिया महोत्सव की विशेषता यह है कि बड़ी संख्या में श्रद्धालु 40 दिन तक नंगे पांव चलते हैं, पलंग का त्याग कर ज़मीन पर सोते हैं, सात्विक “स्वस्तिक भोजन” करते हैं, और पूरी तपस्या के साथ व्रत का पालन करते हैं। यह केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि आत्म-शुद्धि, धैर्य और भक्ति का जीवंत उदाहरण है।
परंपरा में संस्कृति, संस्कृति में शक्ति
वरिष्ठ समाजसेवियों के अनुसार चालिया महोत्सव झूलेलाल भगवान की उस तपस्या की याद दिलाता है, जब उन्होंने जल पर बैठकर अन्याय के विरुद्ध समाज को मार्ग दिखाया। आज वह प्रेरणा समाज में धैर्य, धर्म, एकता और सहिष्णुता के रूप में जीवित है, महोत्सव पर देश व संसार की में अमन शांति कायम रहे इसकी अरदास भी की जाती है
सांस्कृतिक गतिविधियों से सजी संध्याएं
मंदिरों में प्रतिदिन झूलेलाल साहेब की कथा, महिला मंडलों द्वारा भजन, आरती, बच्चों द्वारा देशभक्ति गीत व नृत्य प्रस्तुतियाँ आयोजित की जा रही हैं। यह पर्व अब धार्मिकता से आगे बढ़कर एक सामाजिक, पारिवारिक और सांस्कृतिक उत्सव बन चुका है, जिसमें हर वर्ग भाग ले रहा है।
सिंधी समाज — हिंदुस्तान में मेहनत, ईमानदारी और संस्कारों की पहचान
भारत में बसने के बाद सिंधी समाज ने व्यापार, सेवा, शिक्षा, चिकित्सा, सामाजिक सेवा जैसे हर क्षेत्र में अपनी कड़ी मेहनत, अनुशासन और ईमानदारी से मिसाल कायम की है। चालिया महोत्सव इसी संस्कृति का सजीव रूप है, जहाँ भक्ति के साथ संस्कार, समाज के साथ सहभाव और पीढ़ियों के बीच संवाद देखने को मिलता है।
संस्कृति की जड़ों से जुड़ने का पर्व
चालिया महोत्सव सिर्फ धर्म नहीं, संस्कारों की खेती है। यह आने वाली पीढ़ियों को सिखाता है कि भक्ति केवल मंदिर तक सीमित नहीं, बल्कि जीवन जीने की शैली है। यह पर्व यह भी संदेश देता है कि यदि समाज संगठित हो, तो संघर्ष को भी अवसर में बदला जा सकता है।
“  आयोलाल झूलेलाल श्रद्धा की यह ध्वनि इस पवित्र जयघोष के साथ उदयपुर के मंदिरों में गूंज रही है महोत्सव समापन पर बहराणा का विसर्जन जल किया जाता है।
         समाज के पंचायत प्रमुख नानकराम कस्तूरी , प्रताप राय चुग, मुरली राजानी,  ,अशोक गेरा, किशन वाधवानी, उमेश नारा, उमेश मनवानी, कैलाश नेभनानी, सुखराम बालचंदानी आदि पदाधिकारी कार्यक्रम में भाग लेते हैं।
By Udaipurviews

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