उदयपुर। सूरजपोल स्थित दादाबाड़ी में साध्वी कृतार्थ प्रभा श्रीजी ने कहा कि यह यात्रा बुराई से अच्छाई की ओर, अवगुण से गुणों की ओर ले जा रही है। समकित की इस यात्रा में यह महत्वपूर्ण है कि दोष किसी के मत देखो। आंखें मिली हैं तो कुछ तो देखेंगे। सबके अपने अपने विचार होते हैं। बस में कोई बैठता है तो कोई स्लीपर लेता है। मैं किसी के दोष देख रहा हूँ तो मुझ में दो दोष हो गए। हम खुद गुणी होते तो क्या यहां होते! दोषी ही इस संसार में है। निर्दोष तो मोक्ष को प्राप्त हो गया। किसी में कम तो किसी में ज्यादा दोषी तो सब हैं।
उन्होंने कहा कि किसी ने मेहनत की तो अच्छे नम्बर आये किसी ने कम की तो कम नम्बर आये। कोई धर्म कर रहा है तो दोष कम कर रहा है। सामायिक करने वाला भी सोचता है कि दोष कैसे कम हों और सहम करने वाला भी यही सोचता है। इस संसार में भटक रहा व्यक्ति अब तक मिथ्यात्व से सम्यकत्व की ओर जाने का प्रयास ही कर रहा है। उसके गुणों को लेने की कोशिश करो। दोष मत देखो।
साध्वी श्रीजी ने कहा कि सुपड़े से साफ करते हैं। अच्छी चीज रह जाती है और कचरा बाहर हो जाता है। छलनी से अच्छा उपयोगी नीचे जाती है और कचरे को रोक लेती है। हमें सूपड़ा बनना है। अच्छी चीज रखनी है। सज्जन बनना है। दोषों को बाहर निकालना है और गुणों को रख लेना है। एक राजा एक आंख से अंधा और एक पांव स3 लंगड़ा था लेकिन सुंदर चित्र बनाने वाले को मुंहमांगा इनाम देने की घोषणा की। अगर नही बनाया तो मौत की सजा भी होगी। रोज कई लोग आए लेकिन देख देखकर वापस चले गए। मैसूर से एक चित्रकार आया। उसने चित्र में राजा को शिकार करते हुए दिखाया ताकि एक आंख बंद रही और घुटना मुड़ा हुआ था। कमी थी लेकिन उसे गुणों से छिपा दिया।
समकित यात्रा बुराई से अच्छाई की ओर ले जातीः कृतार्थप्रभाश्री
