सभी के सुख का विचार करना दैविक वृत्ति है : जैनाचार्य रत्नसेन सूरीश्वर महाराज

हिरण मगरी सेक्टर नं 3 उदयपुर में हुई धर्मसभा
उदयपुर, 16 जून। जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर महाराज ने श्री शांतिनाथ जैन संघ महावीर भवन हिरणमगरी सेक्टर नं. 3 उदयपुर में विविध आयोजन हुए। कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया ने बताया कि जैनाचार्य रत्नसेन सूरीश्वर महाराज ने आयोजित धर्मसभा को प्रवचन देते हुए कहा कि भगवान महावीर की आत्मा तीर्थंकर बनी उसके पीछे मुख्य कारण था उनके 27 जन्म के पहले नयसार के रूप में ग्रामचिंतक को आया हुआ दान देने का शुभ विचार। दान का विचार आना परोपकार की वृत्ति है। अपने सुख का विचार करना स्वार्थ वृत्ति है परंतु सभी जीवों के सुख का विचार करना दैविक वृत्ति है। जो मात्र संग्रह करता है वह मनुष्य के अवतार में राक्षस है और जो प्राप्त हुई सामग्री का उदारता से दान देता है, वह मनुष्य के अवतार में देव है। खाया हुआ अन्न तो कल विष्टा हो जाएगा, परंतु दिया हुआ अमृत बन जाएगा । जैसे बादलों का स्थान हमेशा ऊँचा रहता है और सागर का स्थान हमेशा नीचे रहता है, इसके पीछे भी यही कारण है कि बादल जहाँ भी जाते है वहाँ पर बरसते है, जबकि सागर चारों ओर से आने वाले पानी का  संग्रह ही करता है। वैसे ही दान दाता का स्थान भी हमेशा ऊपर रहता है। शालिभद्र ने पूर्व जन्म में गुरु भगवंत को खीर का दान दिया था, परंतु शुभ भाव के माध्यम से वे अपार संपत्ति के मालिक बने एवं अल्प भवों में मोक्ष प्राप्ति का निश्चय कर गए। कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया ने बताया कि जैन श्रावक समिति अध्यक्ष आनंदीलाल बम्बोरिया, भूपाल सिंह दलाल, जीवन सिंह कंठालिया,  समस्त कार्यकारिणी सदस्य आदि भी उपस्थित रहे।

By Udaipurviews

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