उदयपुर। आचार्य नानेश के प्राण आचार्य ज्ञानचंद महाराज साहब ने आज आगम नगर में माहिती धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि जब हमें शारीरिक रोग हो , आर्थिक कठिनाई हो या अन्य कोई समस्या हो, अगर पूरी भक्ति के साथ अरिहंतों की स्तुति की जाए तो बड़ी से बड़ी समस्या का सहज समाधान हो जाता है।
आज शस्त्रों से युद्ध का समय नहीं रहा आज तो आकाश में सीधी मिसाइल छोड़ी जाती है और इस वक्त एंटी मिसाइल छोड़कर उसे ध्वस्त कर दी जाती है।
हमनें अभी तीन दिन के हिंदुस्तान पाकिस्तान के युद्ध में देखा होगा। इससे भी आगे अब तो ऐसे ऐसे तरंगों के सेंसर बन चुके हैं, जो बड़ी से बड़ी मशीन को जाम कर देते हैं परंतु हमारे प्रभु की भक्ति का सेंसर, उन सब शस्त्र अस्त्रों से अधिक प्रभावी है। इतिहास में सुदर्शन सेठ की घटना प्रसिद्ध हैं जब यक्षाविष्ट अर्जुन माली जो प्रतिदिन 6 पुरुष एक स्त्री को मारता था, जहां श्रेणिक की सेना भी कुछ नहीं कर पाई। उसको भी बिना किसी शस्त्र के सुदर्शन सेठ ने परमात्मा की भक्ति से परास्त कर दिया। बल्कि अर्जुन माली की क्रूर भावना को ही चेंज कर दिया।
परमात्मा की भक्ति से उत्पन्न तरंगे इंसान को बड़ी से बड़ी समस्या से निजात दिला देती है।
उन्होंने कहा कि मुंहपत्ती लगाना भी वैज्ञानिक प्रक्रिया है जो की कोरोना के समय पूरे विश्व ने इसे स्वीकार कर लिया। जब भी सामायिक की साधना की जाती है, तब मुंहपत्ती लगाई जाती है। जब संत दर्शन या देव दर्शन किए जाते हैं, तब उत्तरासन लगाया जाता है। जो नाक तक ढंका जाता है। सामायिक हो या निरवध स्थान पर बैठकर करने से नाक ढकने की जरूरत नहीं, लेकिन संत दर्शन तो कहीं भी किये जा सकते हैं, वहां नाक, मुंह दोनों ढकना जरूरी है। यह है वैज्ञानिक प्रक्रिया। अर्जुन माली ने वही किया और यक्ष शक्ति को परास्त कर दिया। आज के युग में यह चमत्कार नहीं अपितु साइंटिफिक प्रक्रिया है।
हमारी समस्या इतनी बड़ी नहीं है, फिर भी हमारा बेड़ा पार नहीं हो रहा है क्योंकि हमें पूरा विश्वास, श्रद्धा नहीं है। अगर अच्छा काम करते-करते भी परिणाम सही नहीं आ रहा है तो परेशान ना हो। समझों प्रभु की तुलना में कर्म अधिक भारी है। बहुत कट गए हैं, जो बचे हैं, उसका फल भोगना ही पड़ेगा। संतरत्न श्री सुदर्शन मुनि जी महाराज साहब के आज 32 का तप है। नररत्न दिलीप जी बाबेल के 15 के तप का अभिनंदन किया गया। तपस्या के गीतों का आयोजन श्रीमती विमला देवी, नेहा कोठारी की ओर से रखा गया।
’अरिहंत की भक्ति से बड़ी से बड़ी समस्या का सहज समाधान संभव’- आचार्य ज्ञानचंद
