उदयपुर/ बड़ोदरा, 1 दिसम्बर. भारत का वैज्ञानिक ज्ञान पर्यावरण विज्ञान, स्वास्थ्य विज्ञान, मनोविज्ञान, नैतिकता और आध्यात्मिकता को एक एकीकृत ढांचे में समाहित करता है। खंड खंड में शिक्षा देने वाले आधुनिक विषयों के विपरीत, भारतीय ज्ञान एक समग्र समझ को प्रस्तुत करता है। भारत के इस ज्ञान में समग्र अंतर्दृष्टि और पारिस्थितिकी, पर्यावरण सुरक्षा व मानवीय जिम्मेदारियों के निर्वहन का सुंदर संयोजन है। भारतीय जीवन दर्शन अंतर्विषयक अंतर्दृष्टि , इंटर डिसिप्लिनरी इनसाइट ,परस्पर संबंधित ज्ञान और अंतरमन के सुधार पर आधारित हैं ।
यह विचार विद्या भवन एवं पर्यावरण संरक्षण गतिविधि से जुड़े चिंतक डॉ अनिल मेहता ने गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय में यूजीसी-मालवीय मिशन शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र के रिफ्रेशर कोर्स में व्यक्त किए। आयोजक प्रो भावना पाठक ने कोर्स के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला । कोर्स में भारत के विभिन्न विश्विद्यालयों के जीवन विज्ञानी भाग ले रहे हैं।
मेहता ने पवित्र गीता सहित विविध भारतीय शास्त्रों का उल्लेख करते हुए कहा कि भारतीय वैज्ञानिक ज्ञान जीवन विज्ञान, पर्यावरण , समाज , नीति एवं आचरण पर गहरी चेतना विकसित करता हैं।
गीता जयंती की शुभकामनाएं देते हुए मेहता ने भगवद गीता के पारिस्थितिक दृष्टिकोण को समझाया । उन्होंने कहा कि हमारे कर्म सीधे तौर पर पर्यावरणीय स्थिरता, वर्षा के पैटर्न, मिट्टी की उर्वरता और जैव विविधता को प्रभावित करते है।
गीता में कहा गया है कि प्राणी अन्न से उत्पन्न होते हैं,अन्न वर्षा से होता है,वर्षा यज्ञ से होती है,और यज्ञ कर्म से उत्पन्न होता है। पारिस्थितिकी के एक पूर्ण चक्र को रेखांकित करने वाला गीता का यह ज्ञान अन्योन्याश्रय , इंटरडिपेंडेंस पर आधारित है।
यहाँ ‘यज्ञ’ को केवल अनुष्ठान के रूप में नहीं, बल्कि निस्वार्थ और जिम्मेदार मानवीय आचरण के रूप में है जो पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखता है।
डॉ. मेहता ने कहा कि गीता प्राकृतिक और जैविक प्रणालियों की एकीकृत समझ को विकसित करने वाला एक महान ग्रंथ हैं। गीता में आधुनिक विकासवादी सिद्धांतों और जैविक उत्पत्ति के सिद्धांत वर्णित है। गीता में वर्णित पंचमहाभूतों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि ये पाँच तत्व ब्रह्मांड और मानव शरीर, दोनों की नींव बनाते है। सभी प्राणी प्रकृति से उत्पन्न होते हैं जबकि परमात्मा बीज देने वाले पिता के रूप में कार्य करते हैं।
गीता में अभिव्यक्त इस दर्शन तथा पोषण विज्ञान को स्पष्ट करते हुए मेहता ने कहा कि सात्विक भोजन को स्पष्टता, जीवन शक्ति और खुशी का मूल माना गया है।। यह प्राचीन समझ आज के ‘गट-ब्रेन एक्सिस’ और होलीस्टिक हेल्थ के विज्ञान को दर्शाती है। गीता कहती है कि भोजन न केवल शरीर को बल्कि मन और भावनाओं को भी आकार देता है। गीता का यह ज्ञान आहार विकल्प , मिट्टी के स्वास्थ्य और ‘इकोलॉजिकल फुटप्रिंट’ के संदर्भ में बहुत उपयोगी है।
डॉ. मेहता ने “माता भूमि: पुत्रोऽहं पृथिव्या:” का उल्लेख करते हुए कहा कि अथर्ववेद का पृथ्वी सूक्त संसाधनों को निकालते समय पृथ्वी के महत्वपूर्ण बिंदुओं को चोट न पहुँचाने की सलाह देकर देखभाल व संवेदनशीलता की विश्वदृष्टि का विस्तार करता है। उपनिषद के “तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम्” दर्शन में सर्कुलर बायोइकोनॉमी , जीरो-वेस्ट लिविंग और सस्टेनेबल डेवलपमेंट के आधुनिक सिद्धांत व्यक्त हुए है।
मेहता ने कहा कि उपनिषद की घोषणा “सर्वं खल्विदं ब्रह्म” जैव विविधता संरक्षण का आधार प्रदान करती है। समस्त अस्तित्व दिव्य है, अत: सूक्ष्मजीवों से लेकर विशाल जीवों तक—हर जीवन रूप की रक्षा समान श्रद्धा के साथ की जानी चाहिए। यह विश्वदृष्टि मानव-केंद्रितता से परे जाकर देखभाल की एक सार्वभौमिक नैतिकता स्थापित करती है।
मेहता ने कहा कि “यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे” , अर्थात जो शरीर में है, वही ब्रह्मांड में है, शास्त्रों में वर्णित यह ज्ञान सिस्टम बायोलॉजी को दर्शाता है।
