संस्कृतवैभवम्-2025 में संस्कृत का वैभवपूर्ण उत्सव

उदयपुर। दिव्यवाणी संस्कृत संस्थान एवं श्रीकुन्दकुन्दकहान शाश्वत पारमार्थिक ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में “संस्कृतवैभवम्-२०२५” कार्यक्रम का भव्य आयोजन भारतीय संस्कृति एवं संस्कृत दिवस के पावन अवसर, श्रावणी पूर्णिमा पर सम्पन्न हुआ।
कार्यक्रम का शुभारंभ शाश्वत कन्या महाविद्यालय की बालिकाओं द्वारा प्रस्तुत मंगलाचरण से हुआ, जिसने वातावरण को पूर्णतः संस्कृतिमय एवं भक्तिभावपूर्ण बना दिया। इसके पश्चात स्वागत उद्बोधन एवं कार्यक्रम प्रतिवेदन दिव्यवाणी संस्कृत संस्थान के सचिव डॉ. निलेश जैन द्वारा प्रस्तुत किया गया, जिसमें उन्होंने कार्यक्रम की रूपरेखा, उद्देश्य एवं संस्कृत संवर्धन के लिए संस्थान की निरंतर गतिविधियों का विवरण दिया। कार्यक्रम के आरंभ में ही सभी अतिथियों का तिलक, माला, अंगवस्त्र एवं आत्मा की दशा को दर्शाने वाली छः लेश्या का प्रतीक-चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया, जिससे मंच की गरिमा और आयोजन का आध्यात्मिक वातावरण और भी प्रखर हो गया।
अध्यक्षीय पद पर पूर्व मावली विधायक धर्मनारायण जोशी उपस्थित रहे। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि संस्कृत केवल भाषा नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा है, जिसके संवर्धन में प्रत्येक नागरिक का योगदान आवश्यक है।
मुख्य अतिथि भाजपा आपदा राहत विभाग के प्रदेश संयोजक डॉ. जिनेन्द्र शास्त्री रहे। उन्होंने ओजस्वी वाणी में अपने प्रेरणादायक मुख्य उद्बोधन में कहा कि संस्कृत केवल अतीत की स्मृति नहीं, बल्कि भविष्य की दिशा है। जब तक हम अपने बच्चों के मन में संस्कृत के प्रति प्रेम और गर्व नहीं जगाएँगे, तब तक हमारी सांस्कृतिक जड़ें सुदृढ़ नहीं होंगी।
उन्होंने यह भी कहा कि संस्कृत के माध्यम से न केवल शास्त्र और ज्ञान की परंपरा जीवित रहती है, बल्कि यह हमें जीवन में संयम, सेवा, करुणा और सहअस्तित्व का मार्ग भी दिखाती है। यह भाषा विज्ञान, गणित, चिकित्सा और योग तक के क्षेत्रों में अद्वितीय योगदान रखती है, इसलिए इसे विद्यालय से लेकर जन-जन के जीवन में उतारना समय की आवश्यकता है।
उन्होंने उपस्थित छात्राओं और युवाओं से आह्वान किया कि संस्कृत को केवल विषय न मानें, बल्कि इसे अपने जीवन का संस्कार और संस्कारों का जीवन बनाएं।
विशिष्ट अतिथि डॉ. विजयप्रकाश विप्लवी ने संस्कृत को एक वैश्विक धरोहर बताते हुए कहा कि यह भाषा भारत की एकता, सांस्कृतिक गौरव और ज्ञान-विज्ञान का शाश्वत आधार है।
विशिष्ट अतिथि ललित किकावत ने कहा कि संस्कृत में निहित ज्ञान विज्ञान, गणित और चिकित्सा तक के क्षेत्र में आज भी मार्गदर्शक है, अतः इसे आधुनिक युग की आवश्यकताओं से जोड़ना होगा।
डॉ. मुरलीधर पालीवाल (सहायक आचार्य, संस्कृत विभाग, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय) “संस्कृतसाहित्ये नैतिकमूल्यानां च आधारशिला” विषय पर उन्होंने बताया कि संस्कृत साहित्य में निहित नैतिक मूल्य मानव समाज को सज्जनता, सत्यनिष्ठा एवं सेवा की ओर प्रेरित करते हैं।
डॉ. तपिश शास्त्री (शिक्षा प्रभारी, शाश्वत धाम जैन कन्या महाविद्यालय) दृ “संस्कृतवाङ्मये लोककल्याणदृष्टिः” विषय पर उन्होंने कहा कि संस्कृत वाङ्मय लोककल्याण के विचारों का भंडार है, जो व्यक्ति को आत्मकल्याण से लोककल्याण की ओर अग्रसर करता है।
पं. ऋषभ शास्त्री (प्रधानाचार्य, राजकीय वरिष्ठ उपाध्याय संस्कृत विद्यालय, प्रतापनगर) दृ “भविष्यति संस्कृत भाषायाः विशिष्टतथ्या” विषय पर उन्होंने स्पष्ट किया कि भविष्य में संस्कृत भाषा आधुनिक तकनीक के साथ समन्वित होकर अधिक सशक्त एवं व्यापक रूप से प्रचलित होगी।
संस्कृत गीत एवं संस्कृत श्लोक प्रतियोगिता का आयोजन दो वर्गों कृ विद्यालय एवं महाविद्यालय में हुआ विद्यालय वर्गः प्रथम लब्धि जैन, द्वितीय अनु जैन, तृतीय प्रियल जैन महाविद्यालय वर्गः प्रथम प्रज्ञा जैन, द्वितीय प्रांशी जैन, तृतीय सुहानी जैन। विशेष प्रोत्साहन पुरस्कार दक्षिता कुंवर को गीता के श्लोकों के उत्कृष्ट वाचन हेतु प्रदान किया गया। संचालन प्रदेश प्रवक्ता अभिषेक शर्मा ने किया तथा आभार प्रदर्शन डॉ. पुष्कर सिंह राव ने किया। कार्यक्रम में डॉ. नारायण सिंह राव, कैलाश कुमावत, पं. सुरेश शास्त्री, पं.सम्मेद शास्त्री, पं.अमित शास्त्री, विदुषी भाग्यश्री, विदुषी विधि, वंदना जैन, शोभा जैन सहित अनेक गणमान्यजन एवं संस्कृत प्रेमी उपस्थित रहे। डॉ. निलेश जैन ने कहा कि “भारतीय संस्कृति की मूल धरोहर संस्कृत में ही निहित है, अतः संस्कृत के प्रचार-प्रसार एवं संरक्षण हेतु समाज का जागरूक होना आवश्यक है।”

By Udaipurviews

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