उदयपुर, 1 अगस्त। श्री हुक्मगच्छीय साधुमार्गी स्थानकवासी जैन श्रावक संस्थान के तत्वावधान में केशवनगर स्थित नवकार भवन में चातुर्मास कर रही महासती विजयलक्ष्मी जी म.सा. ने शुक्रवार को धर्मसभा में कहा कि 84 लाख जीव योनि के सभी जीव अपने हलन-चलन के लिए आहार ग्रहण करते हैं यहां तक कि केवलज्ञान प्राप्त होने के बाद केवलज्ञानी प्रभु भी आहार करते हैं ,क्योंकि वितरागी के 11 परीषह बताए गए हैं उसमें प्रथम परीषह क्षुधा अर्थात भूख का परिषह है। साधु अपने संयमी जीवन का पोषण करने के लिए व संसारी शरीर का पोषण करने के लिए आहार लेते हैं। नरक के जीव भी दुर्गंधमय, सभी वर्ण, गंध, रस, स्पर्श युक्त अप्रिय अमनोज्ञ आहार करते हैं। तपस्वी जीव अपनी रसनेन्द्रिय पर नियंत्रण कर तप के द्वारा कर्मों की निर्जरा करते हैं। यदि हम तप ना भी कर पाएं तो दान, शील, चरित्र व धर्म की आराधना करके पुण्य का उपार्जन कर सकते हैं। इससे पूर्व महासती सिद्धि श्री जी म.सा. ने कहा कि यदि हम देवताओं का सच्चे दिल से एवं तप की आराधना करके स्मरण करते हैं तो उनका भी आसान हिलता है और वे हमारे सन्मुख उपस्थित हो सकते हैं।
सादा, सात्विक और संयमित आहार ही धर्म का आधार है : रविन्द्र मुनि
उदयपुर, 1 अगस्त। श्री वर्धमान गुरू पुष्कर ध्यान केन्द्र के तत्वावधान में दूधिया गणेश जी स्थित स्थानक में चातुर्मास कर रहे मेवाड़ गौरव श्री रविन्द्र मुनि जी म.सा. ने शुक्रवार को धर्मसभा में कहा कि सही भोजन ही स्वस्थ जीवन की कुंजी है। भोजन ऐसा हो जो शरीर को पोषण दे और आत्मा को शुद्धि करे। कहावत भी है जैसा खावे अन्न वैसा होवे मन। सादा, सात्विक और संयमित आहार ही धर्म का आधार है। इसलिए वर्तमान में प्रचलित फास्ट फूड डोसा, चाउमीन, पिज्जा, बर्गर जैसी तामसिक व विकारी पदार्थ न स्वयं ग्रहण करें न ही बच्चों को इसकी आदत डालें। स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन का वास होता है। हमारी आहार शैली जितनी संयमित होगी हमारा मन धर्म के प्रति उतना ही प्रगाढ़ होता चला जाएगा और ये मन धर्म में रमने लग जाएगा। भोग की आदतें रोग को बुलावा देती है इसलिए विवेक से खाएं और विनय से जिएं। इससे पूर्व श्री जिनेन्द्र मुनि जी म.सा. ने भी धर्मसभा को सम्बोधित किया। केन्द्र अध्यक्ष निर्मल पोखरना ने बताया कि बाहर से दर्शनार्थियों के आने का दौर बना हुआ है साथ ही त्याग-तपस्याओं की लड़ी हुई है। सभी तपस्वियों का केन्द्र द्वारा बहुमान भी किया गया।