उदयपुर। सूरजपोल स्थित दादाबाड़ी में साध्वी विरल प्रभा श्रीजी ने कहा कि सम्यक दृष्टि और मिथ्या दृष्टि दोनों में गुण की प्राप्ति होती है। एक में सकारात्मक तो दूसरे में नकारात्मक। लोकप्रियता सबको चाहिए। लोकप्रिय बननें के लिए अपना दिल बड़ा करना पड़ेगा। ऐसी आत्मा ने लोकप्रिय बनने के लिए कुछ ऐसे गुण अपनाएं जिससे वो सम्यक दृष्टि भाव में आया। सम्यकत्व की ओर बढ़ाया हुआ कदम ही व्यक्ति को परमात्मा की ओर ले जाता है। सम्यक दृष्टि वाला जीव जितना चाहिए उसी में संतुष्ट रहेगा। जबरन सबको परेशान नाही करेगा।
साध्वी श्री ने कहा कि घर में रहकर आत्मा को कैसे सुधार सकते हैं, यह सम्यक दृष्टि से आता है। मन में तो क्रोध, मोह, मान, माया लोभ है फिर अंदर कैसे विचरण करोगे। मन में लोभ है तो अंदर से ही सैफ करना होगा। बाहर दिखाने से क्या होगा! अंदर कचरा है तो अंदर से ही निकालना होगा, बाहर से सफाई करने से नही निकलेगा। सम्यकत्व और मिथ्यात्व दोनों ही अंदर है जब तक मिथ्यात्व बाहर नही निकालेंगे तब तक सम्यकत्व का जागरण नही होगा। परमात्मा की भाषा में धनवान और गरीब की भाषा अलग है और अपनी भाषा में अलग। मन में किसी के प्रति दुर्विचार भी आया मतलब कषाय पाल लिया।
साध्वी विपुल प्रभा श्रीजी ने कहा कि जब तक कषाय मन में भरे रहेंगे तब तक मिथ्यात्व से सम्यकत्व की ओर आ ही नही सकेंगे। आपके यहाँ कोई आया तो मेहमान नवाजी की लेकिन जब आप उसके घर गए और उसने कुछ नही पूछा तो मन में जो विचार आया वह कषाय है। मन को सीधा नॉर्मल रखो। साध्वी कृतार्थ प्रभा श्रीजी ने गीत प्रस्तुत किया।
लोकप्रिय बनने के लिए अपना दिल बड़ा करना पड़ताःविरलप्रभाश्री
