उदयपुर। मारवाड़ ज्योति सूर्यप्रभा श्रीजी की सुशिष्या साध्वी विरल प्रभा श्रीजी ने कहा कि मूल में दुख है। दुख के साथ सुख आता है। हम सिर्फ आभास में जी रहे हैं। सुख के पीछे दौड़ रहे हैं। परमात्मा ने जो सुख बताया कि अपनी आत्मा में जीयो, उस तरफ किसी का ध्यान नही है। आज सभी टेम्परेरी सुख की दौड़ में भाग रहे हैं।
मनुष्य भव में तप, त्याग कर सकते हैं लेकिन करते नहीं। मनुष्य को बड़भागी मानते हैं। मनुष्य परमात्मा का परोक्ष रूप से कल्याणक मनाया सकते हैं। हृदय में परमात्मा को उतारा बस आचरण में नही उतारा है। कर्मों का बंधन न हो, यही परमात्मा से आग्रह करना है।
वे शुक्रवार को चातुर्मास प्रवेश के बाद दादाबाड़ी में नियमित प्रवचन में बोल रही थीं। उन्होंने कहा कि परमात्मा की देशना का एकमात्र उद्देश्य जिस तरह उन्होंने परम् तत्व को प्राप्त कर लिया उसी तरह उनसे जुड़े लोग भी उस परम तत्व को प्राप्त करें। उन्होंने कहा कि चातुर्मास संवत्सरी के पहले 50 और बाद के 70 दिन का होता है। कुछ लोग सिर्फ पर्युषण में आते हैं उनके लिए चातुर्मास 8 दिन और सिर्फ संवत्सरी के दिन आने वाले के लिए एक दिन का चातुर्मास होता है। साल भर में ये 4 महीने आराधना के होते हैं। आषाढ़ी चातुर्मास की सबसे अधिक महत्ता है। चातुर्मास का मुख्य लक्ष्य अपना पुरुषार्थ करना है। अपने पर क्या नियंत्रण किया। धर्म के प्रति कितना पुरुषार्थ किया। मौसम बदलते ही चातुर्मास होता है और ये व्याधि का काल कहा जाता है। मौसम बदलते ही बीमारियां बढ़ जाती हैं। आत्मा और शरीर दोनों को इस व्याधिकाल से बचाना है। साध्वी विपुल प्रभा श्रीजी ने गीत प्रस्तुत किया।
आज सभी टेम्परेरी सुख की दौड़ में भाग रहेःसाध्वी विरलप्रभाश्री
