ब्रह्मांड व कर्मों का कंपन परिणाम देता हैं 
मैं भगवान् का हूँ ओर भगवान् मेरे हैं – श्रीमद्भगवद्गीता 
बांसवाड़ा।  ब्रह्मांड में कर्म ज्ञान योग अंतरिक्ष में प्रमुख तत्व है और उसमें मौजूद सभी पदार्थ और ऊर्जा पृथ्वी- सूर्य- चंद्रमा- ग्रह- उपग्रह- नक्षत्र- निहारिकाएं- आकाशगंगा इत्यादि इस विराट ब्रह्मांड के ही हिस्से हैं ब्रह्माण्ड का काम है कि- वह हमारे कर्म के अनुरूप कम्पन उत्पन्न कर दे जो समय आने पर कर्मफल के कम्पन रूप में परावर्तित होकर अभिव्यक्त हो जाती हैं यही कर्म ज्ञान योग है।
साधु विचारक लेखक श्रद्धेय बृज मोहन दास प्रभु  ने अंकुर स्कूल में रविवार सुबह द्वितीय सत्र में प्रवचन में कहे।
उन्होंने कहा कि जैसे दर्पण वस्तुओं को जस की त स प्रतिबिंबित कर देता है, वैसे ही ब्रह्माण्ड भी हमारे किए कर्म के कर्मफल को जस का त स परावर्तित कर देता है।
यदि हमारे कर्म जो अहम्- पोषित अर्थात केवल निज स्वार्थ तक सीमित है तो ऐसे कर्म से नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं अर्थात ऐसे कर्म बुरे कर्म कहलाएंगे और तदनुसार ब्रह्माण्ड के कम्पन प्रतिकूल कर्म-फल के रूप में अभिव्यक्त होंगे।
इसके विपरीत यदि हमारे कर्म परमार्थ की दिशा में हों, तो वे सकारात्मक कम्पन उत्पन्न करेंगे। यही अच्छे कर्म हैं, जिनके कारण ब्रह्माण्ड के कम्पन अनुकूल कर्म-फल के रूप में अपनी अभिव्यक्ति देते हैं।
इसलिए हमें इस तथ्य के प्रति सा वचेत रहना चाहिए कि- हम किस प्रकार के कम्पन ब्रह्माण्ड में प्रेषित कर रहे हैं।
हम जैसे कम्पन भेजेंगे, वैसे ही प्रति- कम्पन अनन्त गुना होकर हमारी ओर लौट आएंगे। इसलिए प्रतिक्षण हमें अपने कर्मों के प्रति सजग रहना चाहिए और बचना चाहिए किसी भी तरह के गलत विचार व बुरे कर्मों से
इससे पूर्व साधु विचारक लेखक श्रद्धेय बृज मोहन दास प्रभु  ने अंकुर स्कूल में प्रथम सत्र  में प्रवचन में कहे।
श्रीमद्भागवत गीता एक पवित्र ग्रंथ है। गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिए थे वही गीता है गीता में आत्मा, परमात्मा, भक्ति, कर्म, जीवन आदि का वृहद रूप से वर्णन किया गया है।
प्रचारक श्रद्धेय श्री बृज मोहन दास प्रभु  ने बताया कि गीता से हमें यह ज्ञान मिलता है कि व्यक्ति को केवल अपने काम और कर्म पर ध्यान देना चाहिए।  साथ ही कर्म करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हम जो भी कर्म कर रहे हैं उसका फल भी हमें निश्चित ही प्राप्त होगा अतः परमार्थ कर्तव्य कर्म उत्तम कोटि के माने गए हैं।
उन्होंने कहा कि गीता हमें बताती है कि जीवन क्या है और इसे कैसे जीना चाहिए, आत्मा और परमात्मा का मिलन कैसे होते है, अच्छे और बुरे की समझ क्यों जरूरी है. इन सभी गूढ़ सवालों से जवाब हमें गीता से प्राप्त होते हैं.  गीता का ज्ञान श्रवण या पठन ज्ञान, मनन ज्ञान
निदिध्यासन ज्ञान, अनुभव ज्ञान से होता हैं।
भगवान श्रीकृष्ण को गुरु मान लो-‘कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् ‘
 साधक को गुरु की खोज करने की आवश्यकता नही है उसे तो ‘कृष्णं वंदे जगद्गुरुम्’ के अनुसार भगवान् श्रीकृष्ण को ही गुरु और उनकी वाणी गीता को उनका मंत्र, उपदेश मानकर उनके आज्ञानुसार साधन में लग जाना चाहिए।
उक्त विचार अंकुर स्कूल में इस्कॉन केन्द्र बांसवाड़ा द्वारा सत्संग संकीर्तन भजन ओर जीवन सूत्रों की सरल व्याख्यान में आहूत धार्मिक समारोह में मुख्य वक्ता के रूप में साधु विचारक और लेखक श्रद्धेय बृज मोहन दास प्रभु  ने प्रवचन में कहे।
साधु विचारक लेखक श्रद्धेय बृज मोहन दास प्रभु ने बताया कि
*योगक्षेमं वहाम्यहम्’*
 यदि साधक को लौकिक दृष्टि से गुरु की आवश्यकता पड़ेगी तो वे जगद्गुरु अपने-आप गुरु से मिला देंगे क्योंकि वे भक्तों का योगक्षेम वहन करने वाले है- ‘योगक्षेमं वहाम्यहम्’
*कृष्णं वंदे जगद्गुरुम्।*
उन्होंने कहा कि जिससे ज्ञान ,प्रकाश  सही मार्ग मिले और जिसमें अपना ध्येय,कर्तव्य दिख जाय  वहीं अपना गुरु-तत्त्व है यह गुरु-तत्त्व सबके भीतर विराजमान है क्योंकि वह गुरु-तत्त्व जिस व्यक्ति शास्त्र आदि से प्रकट होता है वह गुरु कहलाता है।
*अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वशः*
साधु विचारक लेखक श्रद्धेय बृज मोहन दास प्रभु  ने बताया कि भागवत गीता के मर्म को समझने और समझाने से परे पारलौकिक अनुभूतियों की विषय बताया परंतु मूल में भगवान ही सबके गुरु है भगवान ने गीता में कहा है की ‘मैं ही सब प्रकार से देवताओं और महर्षियों  का आदि अर्थात् उनका उत्पादक, संरक्षक, शिक्षक हूँ’ अहमा दिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वशः’
विस्तार से गीता ज्ञान ही मूल जीवन संरचनाएं है जिसमें
अर्जुन ने भी विराट रुप भगवान की स्तुति करते हुए कहा है कि ‘भगवन्! आप ही सबके गुरु हैँ ‘गरीयसे’ ओर ‘गुरुर्गरीयान्’
*श्रीकृष्ण को ही गुरु और उनकी वाणी गीता को उनका मंत्र, उपदेश*
अतः साधक को गुरु की खोज करने की आवश्यकता नही है उसे तो ‘कृष्णं वंदे जगद्गुरुम्’ के अनुसार भगवान् श्रीकृष्ण को ही गुरु और उनकी वाणी गीता को उनका मंत्र, उपदेश मानकर उनके आज्ञानुसार साधन में लग जाना चाहिए।
*योगक्षेमं वहाम्यहम्’*
 उन्होंने कहा कि यदि साधक को लौकिक दृष्टि से गुरु की आवश्यकता पड़ेगी तो वे जगद्गुरु अपने-आप गुरु से मिला देंगे क्योंकि वे भक्तों का योगक्षेम वहन करने वाले है- ‘योगक्षेमं वहाम्यहम्’
मेरे से कोई पूछता है तो मैं कहता हूँ कि भगवान श्रीकृष्ण को गुरु मान लो-‘कृष्णं वंदे जगद्गुरुम्।’
मैं भगवान् का हूँ, भगवान् मेरे हैं यही श्रीमद्भगवद्गीता का मर्म है।
 *मामेकं शरणं व्रज।*
शरणागति गीता का सार है  अगर आप अपना कल्याण चाहते हैं तो सच्चे ह्रदय से भगवान् के शरण हो जाएं |
मैं भगवान् का हूँ भगवान् मेरे हैं भगवान् के साथ हमारा सदा से सम्बन्ध है ऐसे शरण हो जाएं और सब चिन्ताएं छोड़ दें |
 विवाह होने पर कन्या चिन्ता नहीं करती कि रोटी- कपड़ा कौन देगा ? पति तो मर भी सकता है और साधु-सन्यासी भी हो सकता है तथा त्याग भी कर सकता है पर भगवान् में ये तीनों बातें नहीं हैं |
प्रारम्भ में अंकुर स्कूल में हेमन्त पाठक,अरुण व्यास सहित कई साधक साधिकाओं श्रद्धालुओं को उपर्णा ओढ़ाकर भागवत गीता भेट कर सम्मानित किया गया ।
इस अवसर पर प्रारम्भ में दिव्य सुगन्धित द्रव्यों से भगवान श्री योगेश्वर श्री कृष्ण भावनामृत भक्ति साधना सत्संग संकीर्तन भजन द्वारा अभिनंदन निमाई प्रभु,दिव्य आत्मा वरुण प्रभु श्रीमति चन्द्र कांता माताजी, रचना व्यास द्वारा पूजा विधान अभिषेक सम्पन्न कराया गया।
इस अवसर पर समारोह में चंद्रकांता माताजी, रचना व्यास मानस,अजय रौनक, कुशल ,चैतन्य ,डिम्पल, डॉ युधिष्ठिर त्रिवेदी,कैलाश मूंदड़ा,सराफ परिवार , हरिप्रसाद मेहता सुनील ,सुरेश ,
नैमिष ,निखिल, नीरज पाठक, शाबुनी ,दीपिका, विभा ,अर्चना ,अनिता ,रचना व्यास ,हिमानी पाठक, कृपाली भट्ट ,दक्षा सहित कई साधक साधिकाओं श्रद्धालुओं उपस्थित थे।
                        
 
     
                                 
                                 
                                 
                                 
                                