विश्व जल दिवस
गलेशियर संरक्षण मानवता की सबसे बड़ी जरूरत
विश्व जल दिवस पर वर्षा जल की हर बुंद को सहेजने की आवश्यकता
उदयुपर 22 मार्च। विश्व जल दिवस पर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के कुलगुरू प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि विश्व जल दिवस पर वर्षा जल की हर बुंद को सहेजने का संकल्प लेने की जरूरत है। इस दिशा में अपनी अग्रणी भूमिका निभाते हुए विद्यापीठ पिछले तीन वर्षो से विश्व जल सम्मेलन का आयोजन कर रहा है जिसमें हाल ही हुए सम्मेलन में 19 देशों के 60 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया, जिसके सार्थक परिणाम भी देखने को मिल रहे है। प्रो. सारंगदेवोत ने कहा कि मानवता की सबसे बड़ी जरूरत ग्लेशियर संरक्षण की है, वैज्ञानिकों के अनुसार इसी तरह उर्त्सजन में अनियंत्रित वृद्धि जारी रही तो 2040 तक आर्कटिक क्षेत्र गर्मियों में बर्फ रहित हो जायेंगे। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2025 को ग्लेश्यिर के संरक्षण का अन्तर्राष्ट्रीय वर्ष घोषित किया है साथ ही प्रत्येक वर्ष 21 मार्च को विश्व ग्लेश्यिर दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की है, जिसका उद्देश्य ग्लेश्यिरों के महत्व को उजागर करना है। ग्लेश्यिर के पिघलने के कारण आने वाले समय में कई शहर पानी में समा जायेंगे। ग्लेशियरों का संरक्षण जल स्त्रोतों की सुरक्षा और वैश्विक जल संकट से निपटने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इनका संरक्षण न केवल पीने के पानी की अपूर्ति के लिए आवश्यक है बल्कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को नियंत्रित करने में भी मदद करता है। पृथ्वी का 70 प्रतिशत ताजा पानी ग्लेशियर में जमा है जो पीने के पानी, उद्योग और स्वच्छ उत्पाद का स्त्रोत बनते है। एक अनुमान के अनुसार यदि उत्सर्जन में अनियंत्रित वृद्धि जारी रही तो 2040 तक आर्कटिक क्षेत्र गर्मियों में बर्फ रहित हो सकता है। जल संरक्षण मनुष्य का मौलिक अधिकार है लेकिन यह गंभीर चिंता का विषय है कि विश्व में लगभग 2.2 बिलियन लोग आज भी इससे वंचित है। पृथ्वी पर जिस तरह से पर्यावरणीय समस्याओं से आज विश्व जूझ रहा है उसका हल परम्परागत भारतीय ज्ञान में रचा बसा है, जरूरत है तो बस आधुनिक शिक्षा को विद्या के साथ सनातन मूल्यों से जोड़ने की जरूरत है। कुलपति ने प्राचीन जल स्त्रोंतों को पुनर्जिवित करने और उन्हें संरक्षित करने का संकल्प दिलाया।
जल को सनातन मूल्यों से जोड़ने की जरूरत – प्रो. सारंगदेवोत
