उदयपुर. डेढ इंच की जुबान अगर लड़खड़ा जाए तो जीवन जहन्नुम होकर रह जाता है। हम किसी को कुछ भी दे बस वाणी की दरिद्रता ना दे। मीठे बोलने वालों के करेले भी बिक जाते है और कड़वे बोलने वालों का शहद भी नहीं बिकता। यह बात आचार्य महाश्रमण के आज्ञानकर्मी शासन श्री मुनि सुरेश कुमार ने पर्यूषण पर्व के चौथे दिन वाणी संयम दिवस पर पर्यूषण आराधकों को सम्बोधित्त करते हुए कही। उन्होने कहा, मौन करने वालों के सारे प्रयोजन सिद्ध हो जाते हैं, प्रतिकुल परिस्थिति में उत्तेजना का उत्पन्न होना स्वभाविक है, यदि मन के आवेश को वाणी तथा लेखन के द्वारा अभिव्यक्ति नहीं दी जाए तो भावी पगडंडिया निरापद रह सकती है। जीवन में जो पाया जा सकता है उसकी नींव है भाषा विवेक, मौन और अल्पभाषिता । सत्य की खोज के लिए जिम्मेदार है मौन और शिष्टाचार के लिए जवाबदेह है अल्पभाषिता ।
मुनि सम्बोध कुमार ‘मेधांश’ ने भगवान महावीर के त्रिपृष्ट वासुदेव के भव से माँ त्रिशला के 14 स्वप्न व माँ को गर्भ संरक्षण की शिक्षा व महावीर की गर्भ प्रतिज्ञा के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए कहा- कर्म हमारे पिछे-पिछे चलते है, जीवन की खुशहाली के बुद्धास्त्र है” जो प्राप्त है वही पर्याप्त है। उपलब्धियो की चमक सदा उन्ही के हिस्से में आती हैं. जो आकांक्षाओं को ठोकर मार देते हैं।
नारी का गौरव मल्लीनाथ विषय पर बोलते हुवे मुनि सिद्धप्रज्ञ ने कहा की भारतीय संस्क्रति में नारी को बहुत महत्व दिया गया है। नारी को अनेक महापुरषो की माँ बनने का गौरव प्राप्त है। मल्लीनाथ ने तीर्थंकर बनकर महिलाओ का गौरव उजागर किया। उन्होंने अपनी प्रज्ञा से 6 राजकुमार जी उससे शादी करने आये थे को एक युक्ति से ऐसा समझाया की सभी राज कुमारो ने मल्लीनाथ के साथ सभी भौतिक सुख सुविधा को छोड़कर अध्यात्म के उच्च शिखरों को प्राप्त किया। मल्लीनाथ एक ऐसी तीर्थंकर थी जिन्होंने दीक्षा लेने के मात्र एक पहर के बाद केवल ज्ञान की प्राप्ति कर लिया था। आज की महिलाओं को मल्लीनाथ के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए।