उदयपुर। श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ की ओर से सिंधी बाजार स्थित पंचायती नोहरे में चल रहे चातुर्मास में प्रवर्तक सुकनमुनि महाराज ने कहा कि गांव के किनारे नदी बहती थी। नदी किनारे थोड़ी देर खड़े रहे, उसकी ठंडक महसूस की, ठंडी हवा, कलकल बहता पानी, उठती लहरें देखकर वापस आ गए। अगले दिन वापस देखा। तीसरे दिन एक व्यक्ति टहलते मिला। लगातार वहां आने-जाने को देखा तो प्रश्न किया कि नदी किनारे क्या देखने आते हो? सिर्फ नदी देखने क्या आते हो? किसी बीच पर जो, पोर्ट पर जाओ तो आनंद है।
उसे कहा कि रोज नदी दूसरी है। कल और थी, आज और है। दो किनारों के बीच बह रही नदी अलग है। कल जो पानी था वो महासागर में मिल गया। आज दूसरा पानी है। प्रतिक्षण बहने वाला पानी नया है। एक लय से, एक ताल से चलती हुई नदी सागर की बांहों में समा जाती है। उसे किसी डंडे की, उपदेश की जरूरत नही होती। हमारा जीवन नदी जैसा है। प्रतिक्षण आयुष्य कर्म के पुदगल बह रहे हैं। आयुष्य कम हो रहा है। प्रतिक्षण बहते हुए एक दिन मृत्यु के सागर में विलीन हो जाएगी। हर व्यक्ति का जीवन नदी, नाव के संयोग के जैसा है। नाव में बैठना जन्म है और यात्रा करना जीवन है। अनेक व्यक्तियों का मिलना संसार है।
नदी में प्रतिक्षण नए पानी सा है जीवन
