उदयपुर। जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर के राजस्थानी विभाग की ओर से ऑनलाईन फेसबुक लाइव पेज पर “गुमेज” व्याख्यानमाला श्रृंखला के अंतर्गत राजस्थानी भाषा के ख्यातनाम कवि, आलोचक, डॉ. कुंदन माली ने कहा कि राजस्थानी भाषा की आधुनिक कविता में राष्ट्रीय चेतना एवं सामाजिक बदलाव के सुर व्यापक रूप से अभिव्यक्त होते है।
कार्यक्रम की संयोजक एवं राजस्थानी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. मीनाक्षी बोराणा ने बताया कि ऑन लाईन व्याख्यानमाला देश विदेश में राजस्थानी भाषा की समृद्धि को व्यक्त करते सतत लोकप्रिय हो रही है। इसी कड़ी में आधुनिक राजस्थानी कविता में आलोचनात्मक दीठ पर बोलते हुए डॉ. कुंदन माली ने कहा कि साहित्य सृजन के लिए सृजनात्मक भावना, व्यापक जीवन के अनुभव, मानवीय सरोकार और संस्कार उस साहित्य में मौजूद रहते है। कोई भी पाठक इन्ही सभी कारणों से साहित्य के नजदीक आता है, परन्तु किसी रचना या पाठ के अच्छा होने की वजह होती है, सम्यक आलोचनात्मक दृष्टि इसका अर्थ है कि प्रत्येक रचनाकार और पाठक की अपनी आलोचनात्मक दृष्टि होती है उसी के आधार पर वह चुनाव करता है। आलोचना रचनाकार और पाठक की मददगार होती है। किसी भी साहित्य की ऊचाई का पैमाना सम्यक आलोचना ही होती है। आलोचना एक तरफ हमे अच्छा पाठक बनाने के लिए मददगार होती है तो दूसरी तरफ रचनाकार को समकालीन परिवेश परिस्थितियों से रूबरू करवाने का काम करती है। आलोचना रचनाकारों को जांचने, परखने, विश्लेषण करने एवं रचना की खामिया और खुबिया प्रकट करने का महत्वपूर्ण काम करती है।
डॉ. माली ने आधुनिक कविता के विषय पर बोलते हुए कहा कि आजादी के बाद के दौर में आधुनिक प्रगतिशील कविता का बोलबाला रहा है और इस परिपेक्ष में कविता के सुर, भाषा,शब्द आदि बहुत ही उल्लेनीय रहे है। आपने कहा उस समय की कविताओं में व्यंग्य, संबोधन की शैली, चेतना, मुहावरों का धारदार प्रयोग, सामाजिक बदलाव, जन संघर्ष, सामाजिक चेतना, आध्यात्मिक भावभूमि ,समाज में नारी चेतना आदि विषयों पर लेखन होता था।
उस समय के लेखन में जो काव्य प्रवृतियां नजर आती है उनमें मोहभंग, आजादी का अधुरापन, शोषण का चित्रण, सामाजिक अन्याय का चित्रण, मजदुर, किसान आदि की कठिनाईयां, समाज में नारी की दुर्दशा आदि थी।
आपने कहा कि राजस्थानी भाषा की आधुनिक कवितां में प्रयोगशीलता की प्रवृति मौजूद है। नए कवियों ने मुक्त छंद, गीत, खंड काव्य, सोनेट, डाखळा, हाईकू, गजल जैसे काव्य स्वरूपों में अपने लेखन की अभिव्यक्ति की है। आधुनिक कविता में युद्ध विरोधी कविताओं की दृष्टि से सत्यप्रकाश जोशी, अर्जुनदेव चारण की कविताऐं उल्लेखनीय है। प्रकृतिवादी काव्य की दृष्टि से चन्द्रसिंह बिरकाली, नानूराम संस्कृता, कन्हैयालाल सेठिया, नारायण सिंह भाटी, ओम नागर आदि की कविताओं में मनुष्य और प्रकृति का संघर्ष एकमेक होता नजर आता है। इनमें कुदरत की महिमा का बखान मिलता है।
राजस्थानी भाषा को उचित स्थान दिलाने की पीडा राजस्थानी कवियों के मन में शुरूवात से रही है और यहां के कवियों ने अपने काव्य में इस दुख को बार-बार प्रकट किया है।
गांव और शहर जीवन के बदलाव पर भी आदि ने अपनी कविताओं में आधुनिक भावबोध को प्रकट किया है। आधुनिक कविताओं में राजनीति, समाज, संस्कृति, साम्प्रदायिक सोच का विरोध, मनुष्य की अस्मिता, अस्तित्व के मूल प्रश्न आदि राजस्थानी कवियों की कविताओं के केन्द्र में मौजूद है। इसलिए राजस्थानी कविता मे ंव्यापकता और गहराई दोनों ही भरपूर स्तर पर नजर आती है।
आधुनिक राजस्थानी कविताओं में साधारणता से जटिलता, बारीक धरातल से व्यापक धरातल और आगे बढने की कोशिश नजर आती है। यह कविताऐं फुटकर रूप के साथ-साथ खंड काव्य तक मिलती है। रामायण, महाभारत, वेद, उपनिषद आदि ग्रंथो में मौजूद जीवन के सार्वभौमिक सत्य को कविता के माध्यम से पेश करने की दृष्टि से राजस्थानी कविता का आधुनिक परिवेश बहुत ज्यादा समृद्ध है। इन्हें नए भाव बोध प्रदान कर राजस्थानी कवियों ने अपनी सृजनात्मक सामर्थ्य को साबित किया है।
आपने कहा कि 20 वी सदी के उतरार्द्ध और 21 वी सदी के शुरूवात के समय साहित्य जगत में जिस रफतार से बाजारीकरण, भूमंडलीकरण, और नीजिकरण की आंधी चली है। उसका असर आधुनिक राजस्थानी साहित्य पर भी पड़ा है। गलाकाट भाग दौड, मुनाफा खोरी, बेरोजगारी, बेकारी आदि के प्रभाव से गांव शहरीकरण के चपटे में आ गए है और भूख,लाचारी, रोटी और रोजगार की तलाश में भटकती नई पीढी की चिन्ताऐं कविताओं का मूल स्वर बन गई है।
जिनमें आपने कवि रेवतदान चारण, कन्हैयालाल सेठिया, गणैशीलाल व्यास, चन्द्र प्रकाश देवल, आईदानसिंह भाटी, सत्यैन जोशी,तेजसिंह जोधा, मालचंद तिवाडी, कमल रंगा, मदनगोपाल लढढा, राजूराम बिणजारिया, ओम पुरोहित आदि कवियों की कविताओं का उदाहरण देकर बताया ।
डाॅ. माली ने कहा कि आधुनिक राजस्थानी कविता अपनी लम्बी सार्थक विकास यात्रा को कामयाबी से पूरी करते हुए अपने स्वरूप को उजागर कर चुकी है और उसकी एक अलग छवि स्थापित हो चुकी है। आधुनिक राजस्थानी कविता की भाषा में नए नए बदलवा देखने में आ रहे है। आज की कविता डिंगल और प्राचीन भाषा से मुक्त हो रही है। इस में नई भाषा, शब्दावली का समावेश हो रहा है। विज्ञान, तकनीक, रसायन, खगोलशास्त्र, आदि। आज जीवन का ऐसा कोई पक्ष नहीं मिलेगा जहां राजस्थानी भाषा की कविता नहीं पहुंची है। राजस्थानी कविता मनुष्य के साथ खड़ी ही नहीं है बल्कि उसे सचेत करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है।
इस ऑनलाईन व्याख्यानमाला में देश भर से बड़ी संख्या में साहित्यकार, विद्वान और शोधार्थी, विद्यार्थी जुडे रहे। राजेन्द्र जोशी, चन्द्र प्रकाश जोशी ,जितेन्द्र पंचाल, सुरेश साल्वी, मो.इकबाल, भंवरलाल सुथार, लालू भाई, विष्णु शंकर जगदीश आदि।