इंद्रधनुषी सृजन रत्न कार्यक्रम”का शुभारंभ मयंक कुमार डॉलर राय रावल के साक्षात्कार से हुआ शुरू

उदयपुर। भारतीय लोक कला मंडल उदयपुर के सभागार में प्रथम बार आयोजित विशिष्ट साक्षात्कार श्रृंखला “इंद्रधनुषी सृजन रत्न कार्यक्रम”का शुभारंभ अहमदाबाद के मयंक कुमार डॉलर राय रावल के साक्षात्कार से हुआ। लोककला संरक्षक पद्मश्री स्व. देवीलाल जी सामर की स्मृति में,”भारतीय लोक कलामंड़ल,उदयपुर,राजस्थान के कीर्ति शेष पत्रकार श्री भंवर जी सुराणा व तनिमा प पत्र परिवार के साझा तत्वावधान में आयोजित” साक्षात्कार कार्यक्रम में विख्यात वास्तु वैज्ञानिक, ज्योतिष विद् चित्रकार, शिल्प कला विद् ,लेखक, कहानीकार, कवि एवं गायक मयंक रावल ने अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं के बारे में विस्तार से बताया।

दर्शकों के सामने साक्षात्कार कर्ता डॉ शकुंतला सरूपरिया को प्रारंभ में उन्होंने बताया कि सौराष्ट्र में उनका बचपन बहुत अनुशासन में बीता। सातवीं कक्षा से ही किसी मित्र के पिता के पुस्तकालय में जब वास्तु की एक बड़ी किताब को देखा तो वास्तु के प्रति उनकी रूचि व जिज्ञासा बढ़ने लगी। बचपन से ही उन्हें एक चिकित्सक बनना था, लेकिन प्रवेश परीक्षा में कुछ अंक के कम होने के कारण उन्होंने सामान्य इंजीनियरिंग में प्रवेश लिया। वहां भी मन नहीं लगा तो वास्तु एवं स्थापत्य कला के महाविद्यालय में में दाखिला लेना पड़ा। वास्तु और स्थापत्य को मिलाकर वे अपने ज्ञान साधना से एक प्रभावी वास्तु वैज्ञानिक बने। उन्होंने कहा कि वह बचपन से ही बेहद महत्वाकांक्षी और कुशाग्र भी थे। संगीत और चित्रकला उन्हें अपनी माता से मिले। उन्होंने बताया कि वे जीवन की हर कला में जिज्ञासावश व रचनाधर्मिता की अभिव्यक्ति के हर माध्यम को विलक्षण शोध के साथ अपनाते गए। सौ से अधिक गीत लिखे और गाए। वास्तु संबंधी दो पुस्तकों का प्रकाशन कराया। टीवी चैनल और यूट्यूब से उनका जुड़ाव आज भी है। मयंक रावल ने बताया कि वह कभी नदी बन जाते हैं कभी झरना। आज भी 57 वर्ष की उम्र में संगीत महाविद्यालय के दूसरे वर्ष में पढ़ रहे हैं। प्रश्नों के दौरान उन्होंने पूछने पर बताया कि समय और तमाम कार्यों में पर्याप्त संतुलन और समन्वय बिठाते हुए अपनी अभिव्यक्ति को उड़ान दे पाते हैं। उन्होंने बताया कि उनके माता-पिता के अलावा उनकी संतान सहित उनके जीवन में एक साथ कई गुरुओं की उपस्थिति है जिन्होंने उन्हें मयंक रावल बनाया है। घर में,बाहर सड़कों पर, कुटियाओं में, गरीबी से ग्रस्त कलाओं,वास्तु ज्योतिष विज्ञान से समृद्ध समृद्ध लोगों को अपना गुरु मानते हुए उनसे हर विधा की बारीकियां सीखी और अपने शोध और कलाओं को आगे बढ़ाया।

मयंक रावल ने बताया कि उनकी मातुश्री एक चित्रकार व सुरीली गायिका रही हैं व उनके उनके पिता डोलर राय और माता की भूमिका उनके जीवन में महत्वपूर्ण रही है। उन्होंने सवालों के जवाब में कहा कि मैं किसी से नहीं डरते यह उनकी खूबी है और यही कमजोरी भी कि वह किसी से नहीं डरते। उन्होंने कहा कि उन्हें बहुत ख़ुशी होती है जब उनकी वजह से दूसरे के चेहरे पर मुस्कुराहट आए और उन्हें अपने जीवन पर बेहद गर्व है। उन्होंने एक संदेश में कहा कि सुख हो या दु:ख दोनों ही अवस्था को पकड़ कर बहुत दुखी व बहुत सुखी अनुभव करना जीवन को पीछे धकेलता है। वर्तमान में सोशल मीडिया की वजह से आम जनजीवन में आ रही विकृतियों से बचने के लिए उन्होंने कहा कि हमें पीछे लौटना होगा, परिवार, पड़ोसियों, मित्रों के साथ समय बिताने व सबके साथ मिलजुल कर जीने की प्रवृत्ति को अपनाना होगा तभी सोशल मीडिया हमारे सुख और शांति को नहीं छीन पाएगा। श्री मयंक कुमार के देश के बड़े-बड़े सन्तों, उद्योगपतियों व अभिनेताओं के वास्तु सलाहकार हैं। वे अहमदाबाद के एक जाने माने वास्तुवैज्ञानिक ही नहीं,वरन् बहुत कुशल कवि, गीतकार, कोरियोग्राफर, म्यूरलिस्ट, यूट्यूबर, माॉडल,कोरियोग्राफर, अभिनेता, शिक्षक, चित्रकार व ज्योतिष्विद् आदि बहुत से आयामों से भी समृद्ध हैं! आने वाले दिनों में उनके गीतों के कई एल्बम रिलीज होंगे और कई चैनलों पर उनके प्रेरणा भरे और वास्तु से संबंधित कार्यक्रम प्रसारित होंगे। इस अवसर पर आरंभ में भारतीय लोक कला मंडल के निदेशक जाने-माने नाट्य निर्देशक डॉ. हुसैन ने सभी का स्वागत किया। श्री मयंक रावल का परिचय कवि और साहित्यकार डॉ.श्रीनिवासन अय्यर ने कराया तथा डॉ. सुमन पामेचा ने संचालन किया! धन्यवाद की रस्म श्रीमती वीणा गौड़ ने अदा की। इस अवसर पर नगर के गणमान्य लोगों ने कार्यक्रम में शिरकत की।

By Udaipurviews

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