विकास परियोजनाओं में भूस्थानिक प्रौद्योगिकी की अहम भूमिका- डॉ. आचार्य

भू-स्थानिक तकनीकों पर राष्ट्रीय प्रशिक्षण का हुआ समापन
उदयपुर, 26 जून। भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के समूह निदेशक डॉ. पी.एस. आचार्य ने कहा है कि जिला, ब्लॉक एवं पंचायत स्तरीय विकास परियोजनाओं एवं इनकी क्रियान्विति में भूस्थानिकी प्रौद्योगिकी की महत्वपूर्ण भूमिका है।
डॉ. आचार्य रविवार को मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के तत्वावधान में भू-स्थानिक तकनीकों पर 21 दिवसीय राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविर के समापन समारोह में प्रतिभागियों को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने वर्तमान प्रसंगों में भू-स्थानिकी प्रौद्योगिकी के उपयोग और इसके माध्यम से हो रही सुविधाओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी और कहा कि इनके लोकहित में उपयोग के माध्यम से कई महत्त्वपूर्ण विकास परियोजनाओं को मूर्त रूप दिया जा सकता है बशर्ते इसका बेहतर उपयोग किया जाए।  उन्होंने भारत की नई जियोस्पेशियल पॉलिसी व पोषणीय विकास हेतु भूस्थानिक प्रौद्योगिकी के बारे में संभागियों को विस्तार से बताया।
समापन समारोह में अपने संबोधन में इसरो हैदराबाद के समूह निदेशक एवं वैज्ञानिक डॉ. के.एम. रेड्डी ने भारत सरकार द्वारा शैक्षणिक संस्थाओं में भूस्थानिकी प्रौद्योगिकी के विस्तार संबंधित विभिन्न कार्यक्रमों पर प्रकाश डाला। उन्होंने सरकारी तकनीकी कर्मचारियों एवं शिक्षकों को प्रशिक्षित करने के लिए जमीनी स्तर पर प्राकृतिक संसाधनों के बेहतर प्रबंधन, नियोजन एवं विकास के उद्देश्य से भूस्थानिक तकनीकों के प्रयोग और इनको सुदृढ़ करने की मंशाओं को उजागर किया।
भारतीय दूर संवेदन संस्थान देहरादून के वैज्ञानिक बी.एस. सौखी ने वानिकी, नगरीय विकास, वैश्विक उष्णन एवं जलवायु परिवर्तन जैसे क्षेत्र में दूर संवेदन प्रौद्योगिकी के प्रयोग पर जोर दिया। डॉ डी एस चौहान ने स्वागत उद्बोधन किया एवं आभार प्रदर्शन डॉ उर्मि शर्मा ने किया।
6 राज्यों के 20 संभागियों ने लिया हिस्सा
कार्यक्रम की संयोजिका एवं भूगोल विभाग की अध्यक्षा प्रो. सीमा जालान ने कार्यशाला का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया और बताया कि विभाग द्वारा तीसरी बार आयोजित की गई इस कार्यशाला में भारत के 6 राज्यों से 20 प्रतिभागियों ने भाग लिया और जीआईएस व जीपीएस तकनीकों पर गहन मंथन किया। प्रो. जालान ने बताया कि कार्यशाला में विषय विशेषज्ञों ने सुदूर संवेदन, भौगोलिक सूचना तंत्र (जी.आई.एस.), जी.पी.एस. तकनीकी एवं उनके विभिन्न अनुप्रयोगों पर गहन प्रशिक्षण दिया तथा इन तकनीकों का उपयोग कर ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर क्वांटम जी.आई.एस. एवं सागा में विश्लेषण करना सिखाया।  
देश के वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने दिया प्रशिक्षण :
कार्यक्रम की संयोजिका एवं भूगोल विभाग की अध्यक्षा प्रो. सीमा जालान ने बताया कि भारत के पूर्व सर्वेयर जनरल एवं राष्ट्रीय एटलस एवं विषयक मानचित्रण संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ. पृथ्वीश नाग, इसरो के पश्चिमी केन्द्र जोधपुर के महाप्रबन्धक डॉ. ए.के. बैरा, इसरो के देहरादून स्थित भारतीय सुदूर संवेदन केन्द्र के फोटोग्रामिती एवं सुदूर संवेदन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अनिल कुमार, जियोइर्न्फामेटिक्स विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. समीर सरन, फॉरेस्ट्री एवं इकॉलोजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. हितेन्द्र पडालिया, मध्यप्रदेश स्टेट इंजीनियरिंग डेटा सेंटर के फोटोग्रामेट्री विभाग के प्रबंधक अनूप कुमार पटेल, स्पेस एप्लीकेशन सेंटर अहमदाबाद के वेदास अनुसंधान समूह के निदेशक, जोधपुर पश्चिमी केन्द्र के हेड एप्लीकेशन्स डॉ.डी.गिरीबाबू आदि वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने हिस्सा लिया और विशिष्ट जानकारियों से संभागियों को लाभान्वित किया।

By Udaipurviews

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