– पायड़ा जैन मंदिर से आचार्य का चातुर्मासिक सम्बोधन
उदयपुर, 5 जुलाई। पायड़ा स्थित पद्मप्रभु दिगम्बर जैन मंदिर में आचार्य कुशाग्रनंदी महाराज, मुनि अजय ऋषि, भट्टारक अरिहंत ऋषि ससंघ ने चातुर्मास के पहले दिन पंच परमेष्ठ भगवान की पूजना-अर्चना की गई।
प्रचार संयोजक संजय गुडलिया एवं दीपक चिबोडिया ने बताया कि आचार्य संघ के सानिध्य में प्रात: 7 बजे मूलनायक भगवान पद्मप्रभु पर पंचामृत व सुगन्धित धारा का रजत कलश से शांतिधारा की गई। श्रावक-श्राविकाओं द्वारा नित्य नियम पूजन के साथ शांतिधारा, भक्तामर पाठ स्तुति की गई। पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया। इस दौरान पायड़ा, आयड़ व केशवनगर क्षेत्र के सैकड़ों श्रावक-श्राविकाएं मौजूद रहे।
इस अवसर पर आयोजित धर्मसभा में आचार्य कुशाग्रनंदी ने कहा कि जीवन में अच्छे बुरे की पहचान गुरू ही बेहतर तरीके से करवा सकता हैं। गुरू के बगैर मिला हुआ ज्ञान अधुरा होता है। गुरू अनुभवी, ज्ञानी होते है जो शिष्य को सदैव संकटों से बचाते हैं। आचार्य ने कहा कि जिस व्यक्ति ने गुरू की पाठशाला में ठीक से ज्ञान अर्जित कर लिया वो संसार में कभी गलत पथ पर नहीं चल सकता और न कभी ठगा जा सकता। गुरू की महिमा अपरंपार है। जीवन में जो भी कर्म करने जा रहे हो उनके परिणामों के बारें में पहले चिंतन जरूर कर लो। उस कार्य के सकारात्मक-नकारात्मक इफेक्ट पर भी नजर डाल लो। जीवन में कार्यकुशलता से ही कार्य संपन्न होते है। आगे बढऩा है तो समय की कीमत को पहचाने। सफलता परिश्रम व सच्ची लगन से ही संभव हैं। उन्होंनें कहा कि हमे जैन कुल में जन्म मिला हंै और चौबीस तीर्थंकर का सानिध्य मिला हैं तो हमे चाहिए कि हम धर्म आधारित अपने जीवन का व्यापन करते हुए जीव मात्र के लिए दया का भाव रखे। चातुर्मास पर अपनी विवेचना करते हुए कहा कि इस दौरान गुरुओं से प्राप्त उपदेशो का जीवन में पालन करे तथा तप जप के माध्यम से जीवन को नई दिशा में ले जाए, यही मनुष्य जीवन की सार्थकता हैं।