गौरव वल्लभ ने कांग्रेस छोड़ बीजेपी ज्वाइन की

गौरव वल्लभ ने कांग्रेस छोड़ बीजेपी ज्वाइन की

-सय्यद हबीब

आखिर दम तक उदयपुर और कांग्रेस की सेवा करने का वादा करने वाले गौरवल्लभ चुनावों के बाद ऐसे गायब हो गए, जैसे गधे के सिर से सींग। वो स्थानीय कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता भी सही साबित हुए जिन्होंने गौरववल्लभ का पुरजोर विरोध किया था। कांग्रेस में ऐसे ही लोगों की पहचान करने की जरूरत है। मेरे लिहाज से गौरववल्लभ के ससुर भी उनके इस फैसले से हैरान होंगे क्योंकि उदयपुर के अपने दामाद के खातिर चुनावों में उन्होंने व्यक्तिगत रूप से लाेगों से संपर्क किया था। ऐसे लोगों के सामने वे भी शर्मिंदा होंगे। हालांकि ये राजनीति है और नेताओं के लिए इस तरह का व्यवहार बहुत आम है। जैसा कि पूरे देश में देखने को मिल रहा है।
विधानसभा चुनावों से ही गौरववल्लभ ऑफिशियल नाम से व्हाट्सएप ग्रुप सक्रिय है, इस ग्रुप में अब कांग्रेस कार्यकर्ता गौरवल्लभ को बीजेपी का एजेंट तक बोल रहे हैं। अब इस ग्रुप का नाम बदलकर बीजेपी का एजेंट गौरव्वल्लभ भी कर दिया है। पार्टी द्वारा दो बार चुनाव लड़वाने, कांग्रेस के बड़े नेताओं द्वारा उनका सपोर्ट करने जैसे कई सवाल उठाए जा रहे हैं।
लेखक, फिल्मकार स्व. जयप्रकाश चौकसे ने शायर कैफी आजमी की जन्मशती के मौके पर 2019 में लिखा था-कैफी आजमी का जन्म उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के गांव गजवां में 1919 को हुआ था। इस गांव में 20वीं सदी के प्रथम चरण में बच्चे के जन्म का समय और तारीख कहीं लिखकर रखना संभव नहीं था। उन्होंने 1951 से 1997 तक विविध फिल्मों में लगभग दो सो साठ गीत लिखे। ज्ञातव्य है कि साहिर लुधियानवी ने गुरुदत्त की प्यासा के लिए गीत लिखे थे। इस संजीदा फिल्म की सफलता का श्रेय साहिर के गीत और सचिनदेव बर्मन को दिया जाता है। साहिर लुधियानवी ने यह तय किया था कि उनका गीत लेखन का मेहनताना फिल्म के संगीतकार को दिए जाने वाले मेहनताने के बराबर होगा।
इस निर्णय के कारण बलदेव राज चोपड़ा ने संगीतकार रवि के साथ साहिर की जोड़ी बनाई। गुरुदत्त ने अपनी सबसे अधिक महत्वाकांक्षी फिल्म ‘कागज के फूल’ के लिए सचिन देव बर्मन के साथ कैफी आजमी को लिया। यह गौरतलब है कि एक अन्य फिल्मकार की आत्म- कथात्मक ‘मेरा नाम जोकर’ की तरह ‘कागज के फूल भी असफल रही। किंतु दोनों ही फिल्मकारों ने सफल फिल्में बनाकर शानदार वापसी की। राज कपूर ने ‘बॉबी’ तो गुरुदत्त ने ‘चौदहवीं का चांद’ से वापसी की। बहरहाल, कैफी आज़मी ने कागज के फूल’ के सार्थक गीत लिखे। ‘अरे देखी जमाने की यारी, विछड़े सभी, बिछड़े सभी बारी बारी… बहुत लोकप्रिय हुआ।

इसी फिल्म के लिए कैफी आजमी का लिखा गीत ‘वक्त ने किया क्या हंसी सितम/तुम रहे न तुम, हम रहे न हम आज भी गुनगुनाया जाता है। गोयाकि वक्त के सितम का कोई असर इस गीत पर नहीं हुआ। यह गीत तो वर्तमान समय की राजनीति को भी बयां करता है कि कोई भी दल पहले की तरह नहीं रहा। कोई अपने किसी आदर्श पर कायम नहीं है।

By Udaipurviews

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