– शोभायात्रा में उमड़ा सकल जैन समाज, चार माह तक बहेगी धर्म की गंगा
– आचार्य कुशाग्रनंदी संसघ का पायड़ा जैन मंदिर में चातुमासिक प्रवेश
– जब जब मनुष्य धर्म से परे जाता हैं, वह अपने विनाश को आमंत्रित करता हैं : कुशाग्रनंदी
उदयपुर, 4 जुलाई। भक्त शिरोमणी गणधाराचार्य कुंथूसागर महाराज के परमशिष्य देवश्रमण आचार्य कुशाग्रनंदी महाराज, मुनि अजय ऋषि, भट्टारक अरिहंत ऋषि ससंघ का 37वां चातुर्मासिक प्रवेश सोमवार को पायड़ा स्थि पद्मप्रभु दिगम्बर जैन मंदिर में हुआ।
सोमवार प्रात: आयड़ स्थित चन्द्रप्रभु दिगम्बर जैन से निकली शोभायात्रा में सबसे आगे तीन अश्वो पर धर्म ध्वजा धारण किए नौनिहाल, उसके बाद बग्घी में लाभार्थी परिवार तथा नन्ही बालिकाओं ने माथे पर धर्म कलश धारण कर जब मंगल प्रवेश की शोभायात्रा प्रारंभ हुई तो चहुं ओर धर्म और गुरुवर के जयकारों से वातावरण गुंजायमान हो गया। उसके बाद ढोल नगांड़ा वादक चल रहे थे, वहीं 108 महिला कलश लेकर चल रही थी, जैन भक्ति महिला मण्डल का घोष बैण्ड अपनी स्वर लहरियां बिखेर रहे थे। शोभायात्रा में पुरूष श्वेत वस्त एवं महिला केसरिया परिधान में शामिल हुई। महिलाओं ने वस्त्रो के साथ माथे पर साफा बांध गुरुभगवंतो की मंगल गीतों के साथ आगवानी कर रही थी। शोभायात्रा के मार्ग में आचार्य के 37वें चातुर्मास को लेकर जगह-जगह 37 स्वागत द्वार लगाए गए। इस दौरान विभिन्न सकल जैन समाज पायड़ा, आयड़ व केशवनगर के विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधि भी आपने अपने परिधानों में शोभा बढ़ा रहे थे। मंगल प्रवेश की ये यात्रा आयड़ से जैसे जैसे आगे बढ़ी पूरे मार्ग पर स्वागत द्वारो पर खड़े धर्म प्रेमियो ने गुरु संघ का अक्षत की गऊली कर आगवानी की। शोभायात्रा जेसे जैसे आगे बढ़ती गई धर्म प्रेमियो का काफिला भी बढ़ता गया। शोभायात्रा चन्द्रप्रभु जैन मंदिर आयड़ से प्रात: 7.15 बजे प्रारम्भ हुई जो विवेकानंद चौराहा, 100 फीट तिराहा, नागदा रेस्टोरेन्ट, बेकनी पुलया, गणेश घाटी होते हुए पहाड़ा स्थित श्री पदï्मप्रभु दिगम्बर जैन मंदिर पहुंची तो गुरुवर के जयकारो से पूरा पंडाल गूंज उठा। मंदिर पंहुचने के बाद 108 जोड़ों द्वारा पादप्रक्षालन एवं पुष्पवर्षा की गई।
महाराज का पादप्रक्षान देवेन्द्र मेहता, शास्त्र भेंट अक्षय व सुशांत, प्रकाश जैन द्वारा महाअर्ग खुबीलाल अदवासिया द्वारा, महाआरती प्रवीण कुमार, अनिल कुमार सकारावत द्वारा, मंच संचालन राजेन्द्र चित्तौड़ा, मंगलाचरण ब्रम्हचारिणी आराधना दीदी, अमृता दीदी व गिरजा चित्तौड़ा ने किया। 37वें चार्तुमास पर मार्ग पर 37 द्वार लगाए गए।
इस दौरान आयोजित धर्मसभा में आचार्य ने कहा कि हमे जैन कुल में जन्म मिला हंै और चौबीस तीर्थंकर का सानिध्य मिला हैं तो हमे चाहिए कि हम धर्म आधारित अपने जीवन का व्यापन करते हुए जीव मात्र के लिए दया का भाव रखे। चातुर्मास पर अपनी विवेचना करते हुए कहा कि इस दौरान गुरुओं से प्राप्त उपदेशो का जीवन में पालन करे तथा तप जप के माध्यम से जीवन को नई दिशा में ले जाए, यही मनुष्य जीवन की सार्थकता हैं। उससे पूर्व आचार्य श्री ने मांगलिक सुनाया। उन्होंने कहा कि जब जब मनुष्य धर्म से परे जाता हैं, वह अपने विनाश को आमंत्रित करता हैं। चातुर्मास धर्म आराधना का वह पुनीत अवसर हैं, जो चौरासी लाख योनियों में मनुष्य जीवन को ही प्राप्त होता हैं। हमे चाहिए कि हम इस जीवन की उपादेयता को समझे ताकि हम अपने जीवन को सन्मार्ग की ओर ले जा सके।
इस अवसर भोजन पुन्र्याजक नाथुलाल विदाला, संरक्षक सुरेन्द्र दलावत, अध्यक्ष धनराज सकावत, राजमल लखदार, महामंत्री प्रकाश अदवासिया, रमेश पद्मावत, रमेश चन्द्र चिबोडिय़ा, प्रकाश अदवासिया, सुरेश चिबोडिय़ा, नेमीचंद जैन, चन्द्रशेखर, सुनील चिबोडिया, राजेन्द्र जैन, कालूलाल गुडलिया, ललित चिबोडिय़ा, आनन्दीलाल चित्तौड़ा, मांगीलाल सलूूम्बरिया सहिम सैकड़ों की संख्या में श्रावक-श्राविकाएं मौजूद रहे।