उदयपुर, 30 अक्टूबर। केशवनगर स्थित अरिहंत वाटिका में आत्मोदय वर्षावास में बुधवार को धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए हुक्मगच्छाधिपति आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने फरमाया कि संसार में कोई भी जीव निष्क्रिय नहीं रहता। सक्रियत्व जीव के अनेक लक्षणों में से एक है। हमें चिंतन यह करना है कि हमारी क्रिया शुभ हो रही है या अशुभ हो रही है। अभी त्यौहारों के दिन है। आप धनतेरस, रूप चतुर्दशी, दीपावली से लेकर यम द्वितीया तक के त्यौहार लौकिक दृष्टि से मनाते हैं। संसारी सोचता है कि धन के बिना सब व्यर्थ है। इस अर्थ प्रधान युग में सभी अर्थोपार्जन में संलग्न हैं। मैं यह कहना चाहता हूं कि धर्म के बिना अर्थ व्यर्थ है। धर्म को छोड़कर केवल अर्थोपार्जन करना हमारे चिंतन की मिस्टेक है। जो व्यक्ति धन को सुरक्षित रखते हुए अर्थ का उपार्जन करता है, उसकी गति, मति, शक्ति सब धर्म प्रधान होगी। शास्त्रों में कहा है कि धर्मो रक्षति रक्षितः अर्थात् जो धर्म क्ी रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है। आप पर्वों को लौकिक एवं अलौकिक दोनों दृष्टि से मनाएं। आश्रवों को छोड़कर संवर की करनी करें। सब धर्म-धन कमाएं। आज के दिन आचार्यश्री ने हस्तिपाल राजा के आठ सपनों में से तीन सपनों का जो फलितार्थ प्रभु महावीर ने बताया, उसकी सुंदर विवेचना की। उपाध्याय श्री जितेश मुनि जी म.सा. ने फरमाया कि हम उपकारी के उपकार को स्वीार करें। माता-पिता, देव-गुरू-धर्म तो हमारे उपकारी हैं ही किंतु सम्पूर्ण जगत के जीव-जंतु, पशु-पक्षी एवं अनेकों लोग प्रतिक्षण किसी न किसी रूप में हम पर उपकार कर रहे हैं, उन सबके प्रति हमारे मन में आभार भाव होना चाहिए। जिनशासन, आगमवाणी एवं शास्त्र भी हम पर उपकार करते हैं। उपकारी के उपकार को मानने वाला अपनी पात्रता का विकास करता है। यह विकास ही हमें पापों से बचा लेता है। प्रतिदिन श्रद्धेय विदित मुनि जी म.सा. उत्तराध्यन मूल का वाचन कर रहे हैं।
उदयपुर: धर्म को छोड़कर केवल अर्थोपार्जन करना हमारे चिंतन की मिस्टेक है : आचार्य विजयराज
