उदयपुर, 24 अप्रैल। ‘व्यक्ति कर्म करने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन उसका परिणाम उसके हाथ में नहीं हैं। परिणाम तो परमपिता के हाथ में हैं। जैसा कर्म होगा, उसके अनुसार भुगतना भी होगा।’ यह बात नारायण सेवा संस्थान में आयोजित त्रिदिवसीय ‘अपनों से अपनी बात’ के समापन सत्र में अध्यक्ष प्रशांत अग्रवाल ने कही। उन्होंने कहा कि जिसने भी जन्म लिया है, उसे पूर्व जन्म के कर्म का कर्ज तो चुकाना ही है। अपने जन्म को सुधारने और सार्थकता प्रदान करने के लिए दीन-दुखियों की सेवा में भी समय देना चाहिए। बीमार को दवा, प्यासे को पानी, भूखे को भोजन, निर्वस्त्र को वस्त्र देना परम धर्म है। गरीबी और अमीरी का आकलन पैसे से नहीं। व्यक्ति की भावना और संवेदना से होता है। जिसके पास पैसा तो है लेकिन दूसरों की मदद का भाव नहीं तो वही सबसे बड़ा गरीब है। जो सेवा प्राप्त कर रहे हैं, वह ऋणी जरूर बन रहे हैं लेकिन दूसरे जन्म में कर्ज के रूप में सेवा के संस्कार भी प्राप्त करेंगे। सृष्टि का यही नियम है कि आप किसी की मदद करते हैं तो जरूरत पड़ने पर आपका मनोरथ भी स्वतः सिद्ध हो जाता है। इसलिए सेवा के किसी भी अवसर से चूकना नहीं चाहिए। ईश्वर उन्हीं को प्रेम करता है, जो उसकी बनाई दुनिया में सेवा, सदभाव, करुणा और प्रेम से एक-दूसरे की मदद करते है। व्यक्ति को समय का सतत सदुपयोग करना चाहिए। कठिनाई आने पर धैर्य और साहस रखें बाकी सब ईश्वर पर छोड़ दें। वहीं से रास्ता मिलेगा। यश-अपयश,हार-जीत, जीवन-मरण हमारे हाथ में नहीं हैं। हमारे हाथ में सिर्फ सद्कर्म करना है। यदि हम सेवा और जीवदया के मार्ग पर बढ़ेंगे तो बाल भी बांका नहीं होगा। इस आयोजन में देश के विभिन्न राज्यों से निःशुल्क ऑपरेशन, कृत्रिम हाथ-पांव व कैलीपर्स लगवाने के लिए आए दिव्यांगजन व उनके परिजनों ने भाग लिया।
जिसमें मदद का भाव नहीं, वही गरीब : प्रशांत अग्रवाल

-नारायण सेवा में ‘अपनों से अपनी बात’ का समापन