मध्यकाल का प्रसिद्ध तवनगढ़ दुर्ग बयाना से लगभग 23 कि.मी. दक्षिण में एक उन्नत पर्वत शिखर पर अवस्थित है।
Udaipurviews / इस दुर्ग का निर्माण बयाना के महाराजा विजयपाल के ज्येष्ठ पुत्र तवनपाल ने 11 वीं शताब्दी ई. के उत्तरार्द्ध में करवाया था। महाराजा तवनपाल- तहणपाल एवं त्रिभुवनपाल नाम से भी अभिहित थे। अपने निर्माता के नाम पर यह दुर्ग तवनगढ़, तिमनगढ़, त्रिभुवनगढ़ के नाम से भी जाना जाता है। तवनगढ़ दुर्ग समुद्रतल से लगभग एक हजार 309 फीट ऊंची त्रिभुवनगिरि पहाड़ी पर बना हुआ है। दुर्गम पर्वतमालाओं से आवृत, वन संपदा से परिपूर्ण तथा नैसर्गिक सौंदर्य से सुशोभित इस दुर्भेद्य दुर्ग की अपनी निराली शान और पहचान है। वीरता और पराक्रम की अनेक घटनाओं के साक्षी इस दुर्ग में प्राचीन काल की भव्य और सजीव प्रतिमाओं के रूप में कला की एक बहुमूल्य धरोहर संजोए हुए है। इसलिए इसे राजस्थान का खजुराहो नाम से अभिहित किया जाता है।
बयाना के किले पर मुसलमानों का अधिकार होने के बाद तवनपाल ने बारह वर्ष तक अज्ञातवास में रहने के बाद बयाना से लगभग 22 कि.मी. दूर तवनगढ़ (तिमनगढ़) किले तथा सागर नामक जलाशय का निर्माण करवाया। कविराजा श्यामल दास-कृत वीर विनोद में उल्लेख है कि – “मुसलमानों ने यादवों से बयाना का किला छीन लिया। विजयपाल के अट्ठारह पुत्र थे। उसका ज्येष्ठ पुत्र तवनपाल बारह वर्ष तक पोशीदह रहकर अपनी धाय के मकान पर आया, उसने तवनगढ़ का किला बयाना के अग्नि कोण में 15 मील पर बनवाया।”
मध्यप्रदेश में देवास के निकट इणगोड़ा नामक गांव से विक्रम संवत 1190 की आषाढ़ सुदी ग्यारस (15 जून, 1533 ई.) का एक शिलालेख मिला है जिसमें तवनपाल या तहणपाल की उपाधि – ‘परम भट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर’ लिखी मिलती है जिससे पता चलता है कि वह एक शक्तिशाली शासक था। अनुमान किया जाता है कि उसके राज्य में वर्तमान अलवर का आधा भाग, भरतपुर, धौलपुर, करौली, गुड़गांव और मथुरा का क्षेत्र तथा वर्तमान आगरा ग्वालियर का भूभाग सम्मिलित था।
तवनपाल के दो पुत्र हुए-धर्मपाल और हरपाल। तवनपाल का उत्तराधिकारी धर्मपाल बना। हरपाल वीर, पराक्रमी एवं महत्वाकांक्षी था। इसलिए शासन की समस्त बागडोर हरपाल ने अपने हाथ में ले ली। इस कलह के कारण धर्मपाल ने तवनगढ़ छोड़कर एक नया किला धौलदेहरा (धौलपुर) बनवाया। उसके पुत्र कुंवरपाल (कुमारपाल) ने गोलारी में एक किला बनवाया जिसका नाम कुंवरगढ़ रखा। कुछ वर्षों बाद कुंवरपाल ने हरपाल को मारकर तब तवनगढ़ पर अपने पिता का अधिकार स्थापित किया। इधर हरपाल के मारे जाने की घटना से आशंकित होकर बयाना के मुस्लिम शासक ने तवनगढ़ पर घेरा डाल दिया। धर्मपाल ने अपने पुत्र द्वारा चंबल के किनारे निर्मित निकटवर्ती कुंवरगढ़ दुर्ग में शरण ली। परंतु यहां भी आक्रांता द्वारा घेर लिए जाने पर उसने भीषण युद्ध करते हुए वीरगति प्राप्त की। धर्मपाल के पश्चात उसके उत्तराधिकारी कुंवरपाल (कुमारपाल) ने दीर्घकाल तक शासन किया। बयाना और तवनगढ़ दोनों दुर्ग उसके अधीन रहे।
जैन साहित्य में मुनि जिनदत्तसूरी के 1157 ई. में कुंवरपाल के शासनकाल में तवनगढ आगमन तथा कलशाभिषेक समारोह में भाग लेने राजा कुंवरपाल से उनकी भेंट का उल्लेख मिलता है। 1196 ई. में मोहम्मद गौरी ने अपने सिपहसालार कुतुबुद्दीन ऐबक के साथ यादव राज्य पर जबरदस्त आक्रमण किया। कुंवरपाल ने अप्रतिम साहस और पराक्रम का परिचय देते हुए आक्रांता का सामना किया लेकिन पराजित होना पड़ा। बयाना और तवनगढ़ दोनों दुर्गों पर मोहम्मद गौरी का अधिकार हो गया। डॉ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार मोहम्मद गौरी ने 1195 ई. में तवनगढ़ पर अधिकार कर लिया था। डॉ दशरथ शर्मा के अनुसार मोहम्मद गौरी द्वारा तवनगढ़ पर अधिकार कर लिए जाने के साथ ही यादवों की दूसरी राजधानी तवनगढ़ या त्रिभुवनगिरी के गौरवशाली स्वर्णिम युग का पटाक्षेप हो गया।
न्यायचंद्र सूरी-रचित हम्मीर महाकाव्य में भी रणथंभौर के पराक्रमी शासक हम्मीर के दिग्विजय-अभियान के प्रसंग में त्रिभुवनगिरी के शासक द्वारा उसे भेंट दिए जाने का उल्लेख हुआ है। उस समय यहां का शासक कौन था, निश्चित रूप से कहना कठिन है। 14वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में यादववंशीय अर्जुनपाल ने अपने पैतृक राज्य तवनगढ़ पर फिर से अधिकार कर लिया और सरमथुरा के 24 गांव बसाए। उसने विक्रम संवत 1405 (1348 ई.) में कल्याणजी का मंदिर बनवाकर कल्याणपुरी नगर बसाया, जो वर्तमान में करौली कहलाता है। अपनी स्वतंत्र सत्ता खोने के बाद भी तवनगढ़ का महत्त्व बना रहा। 1516 ई. में सिकंदर लोदी ने इस पर अपना अधिकार कर लिया। मुगल सम्राट बाबर के शासनकाल में आलमशाह यहां का दुर्गाध्यक्ष था।
लगभग 8 कि.मी. की परिधि में फैला तवनगढ़ या तिमनगढ़ शास्त्रोक्ति गिरी दुर्ग का उत्तम उदाहरण है। उन्नत और विशाल प्रवेश द्वार तथा ऊंचा परकोटा इसके स्थापत्य की प्रमुख विशेषता है। जगनपोल और सूर्यपोल इसके दो प्रमुख प्रवेश द्वार हैं। बीते जमाने में यह किला अपने आप में एक संपूर्ण इकाई था। समूचा नगर किले के भीतर बसा हुआ था। दुर्ग में लगभग 60 दुकानों से युक्त एक विशाल बाजार था। इसके अतिरिक्त खास महल, बड़ा चौक, ननद- भौजाई का कुआं, राजगिरी, दुर्गाध्यक्ष के महल, सैनिकों के आवासगृह, जीर्ण छतरियां, तहखाने आदि भवन प्रमुख और उल्लेखनीय हैं। इस प्रकार तवनगढ़ या तिमनगढ़ दुर्ग प्राचीन प्रतिमाओं के कारण केवल ऐतिहासिक दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं है अपितु अपनी बहुमूल्य सांस्कृतिक एवं कलात्मक धरोहर के कारण भी विशिष्ट महत्व रखता है।
पन्नालाल मेघवाल वरिष्ठ लेखक
एवं अधिस्वीकृत स्वतंत्र पत्रकार।