‘‘ मृत्यु नहीं है अन्त ’’ विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन
शैक्षिक विकास व लोकतांत्रिक प्रक्रिया के पक्षधर थे पं. नागर – प्रो. सारंगदेवोत
परिवर्तन नहीं तो, जीवन स्थिर – प्रो. सारंगदेवोत
जनुभाई की पहली पाण्डुलिपि का किया लोकार्पण
उदयपुर 16 अगस्त / झमाझम बारिश के बीच राजस्थान विद्यापीठ डीम्ड टू बी विश्वविद्यालय के संस्थापक मनीषी पंडित जनार्दनराय नागर की 25वीं पुण्यतिथि पर प्रतापनगर परिसर में स्थापित आदमकद प्रतिमा पर कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत, कुल प्रमुख भंवरलाल गुर्जर, रजिस्ट्रार डॉ. हेमशंकर दाधीच, प्रो. मंजु मांडोत , प्रो. जीवन सिंह खरकवाल, डॉ. अवनीश नागर सहित कार्यकर्ताओं ने पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हे नमन किया। इस अवसर पर ‘‘मृत्यु नहीं है अन्त ’’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में अपने विचार व्यक्त करते हुए प्रो. सारंगदेवोत ने कहा कि परिवर्तन नहीं होगा तो जीवन स्थिर हो जायेगा। मृत्यु शाश्वत सत्य है इसे हमें स्वीकारना होगा। जिनमें हमें मोह हो जाता है वह हमें प्रिय लगने लग जाता है और उसे खोने पर हमें दुख होता है। अतः हमें मोह को त्याग , सत्य को स्वीकार करना होगा। हर व्यक्ति मुक्ति चाहता है, अगर मुक्ति चाहता है तो उसे मोह छोडना होगा। जनुभाई को याद करते हुए प्रो. सारंगदेवोत ने कहा कि पं. नागर शैक्षिक विकास व लोकतांत्रिक प्रक्रिया के पक्षधर थे। उन्होंने विद्यापीठ की स्थापना उन कठिन परिस्थितियों में की जब मेवाड़ क्षेत्र में अशिक्षा का अंधकार था। उनके प्रयासों से ही मेवाड़ के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का प्रचार-प्रसार हुआ। आज विद्यापीठ देश ही नहीं, विदेश में भी अपना परचम फहरा रहीं है, यह सब जनुभाई की दूरदृष्टि का ही परिणाम है। समारोह में जनुभाई की 1937 की पहली पाण्डुलिपि का लोकार्पण किया गया।
अध्यक्षता करते हुए कुल प्रमुख भंवर लाल गुर्जर ने कहा कि आजादी के पूर्व विषम परिस्थिति में एक बहुत ही लम्बी सेाच के साथ विद्यापीठ की स्थापना की। जिसमें सर्वहारा वर्ग के लिए शिक्षा की जोत जगाई। उन्होने कहा कि आजादी के पूर्व तत्कालीन महाराणा भूपाल सिंह ने जनुभाई को उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए बनारस भेजा। बनारस में विद्धवत लोगों के सम्पर्क में आने से शिक्षा के प्रति उनका लगाव बढता गया और उनकी सेाच में यह आया कि मेवाड की धरा पर भी वंचित व आदिवासी वर्ग केे लिए विश्वविद्यालय की स्थापना की जाये। उसकी क्रियांविति के अन्तर्गत जनुभाई द्वारा 21 अगस्त, 1937 को हिन्दी विद्यापीठ की स्थापना की जो आज उन्हीं के नाम से विश्वविद्यालय जाना जाता है।
नगर निगम द्वारा फतहसागर की पाल पर दर्शक दीर्घा में स्थापित जनुभाई की प्रतिमा का प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत, डॉ. धमेन्द्र राजौरा, डॉ. दिलीप सिंह चौहान सहित कार्यकर्ताओं ने दुग्धाभिषेक, माला, उपरणा व पुष्प अर्पित कर नमन किया।
संचालन डॉ. कुल शेखर व्यास ने किया जबकि आभार डॉ. हेमशंकर दाधीच ने दिया।
इस अवसर पर डॉ. मनीष श्रीमाली, डॉ. प्रदीप शक्तावत, डॉ. हीना खान, डॉ. नीरू राठौड, चितरंजन नागदा, डॉ. लाला राम जाट, डॉ. तरूण श्रीमाली, डॉ. प्रियंका सोनी, जितेन्द्र सिंह चौहान, कुंजबाला शर्मा, सहित कार्यकर्ताओं ने जनुभाई की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हे याद किया।
विद्यापीठ के सभी परिसरों में की पुष्पांजलि:- संस्थापक मनीषी पं. जनार्दनराय नागर 25वीं पुण्यतिथि पर राजस्थान विद्यापीठ के श्रमजीवी महाविद्यालय, विधि महाविद्यालय, विज्ञान संकाय, प्रबंध अध्ययन संस्थान, उदयपुर स्कूल ऑफ सोशल वर्क, लोकमान्य तिलक शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय, होम्योपेथी चिकित्सा महाविद्यालय, फिजियोथेरेपी चिकित्सा महाविद्यालय, स्कूल ऑफ एग्रील्चर साईंसेस, उदयपुर स्कूल ऑफ सोशल वर्क, जनभारती सामुदायिक केन्द्र साकरोदा, कानपुर, बेदला, साकरोदा, नाई, टीडी, खरपीणा, झाडोल, राजस्थान विद्यापीठ कुल सहित समस्त संकायों में पुष्पांजलि सभा का आयोजन कर जनुभाई को याद किया।